सामाजिक न्याय के परम योद्धा, दलित पिछड़े और आदिवासी समाज के बड़े नेता राहुल गांधी मैदान में हैं! यह नव-बौद्धों के लिए राजकुमार सिद्धार्थ के आधुनिक वर्जन राजकुमार राहुल गांधी हैं। जिन्होंने बुद्ध की तरह राजपाट छोड़ कर भारतीय जनता के दुखों को जानने के लिए भ्रमण किया। क्योंकि बुद्ध की तरह 30-40 वर्ष इन्हें अपने राजमहल में सुख भोगने के कारण पता ही नहीं था कि दुख क्या होता है?
एक दिन सत्य की खोज में 'भारत जोड़ो' यात्रा के लिए निकल पड़े रास्ते में जूता बनता मोची मिला इन्होंने जूते में कुछ टांके लगा कर देखा उसका दुख क्या है? रास्ते में साइकिल पर कोयला ढोता मजदूर मिला, कारखाने में वर्कर को देखा, बढई की तरह कुर्सी बनाई, नाऊ की तरह बाल काटे। कहने का मतलब है इन्होने श्रम से जुड़े सारे लोगों में जाकर देखा उनके कार्यों को सराहा क्योंकि 'श्रम' इनकी परम्परा में नहीं था, राजपात विरासत में मिला था। दलित, पिछड़े और आदिवासियों की समस्याओं से इनका पाला नहीं पड़ा था। दुख इस बात का था कि इनसे सत्ता छिन ली गई थी इन्हीं की जाति वर्ग और परम्परा के लोगों द्वारा। उनमें इनके प्रति नकार की भावना थी। उनसे सीधे लड़ाई करने की कुव्वत इनमें नहीं थी। ऐसे में, उदारवादी चेहरे के साथ दूसरे लोगों को इकट्ठा करने की इन्होंने ठानी। वे सब कमेरा वर्ग के पेशा और उसके जीवन को महसूस करने का दिखावा करने के एक बौद्ध संघ की तरह 'इंडिया संघ' बनाया व्यवहारिक जीवन में जातिभेद, शोषण, प्रतिनिधित्व नहीं दिला सके तो "इंडिया संघ" में उसे 'सामाजिक न्याय' का सिंबल बना कर मीडिया में पेश किया। कुछ लोग उनकी महानता के गुण गान करने लगे, कुछ लोगों ने गीत गाये, कुछ लोगों ने मात्र दर्शन कर के अश्रुधारा को बहाने लगे। एक ने तो अपनी कलम तोड़ कर 'व्याकुल मन का नायक' बताकर ग्रंथ ही लिख दिया। क्योंकि राजभवन में सभी ऐसो आराम बुद्ध की तरह भोगते हुए राजकुमार बुद्ध भी व्याकुल हो उठे थे। फर्क यह हुआ कि वे वर्णव्यवस्था में क्षत्रिय थे, ये वर्णव्यवस्था में ब्राह्मण हैं।
मैंने कुछ लोगों को उनके असली खेल के बारे में बताया तो वे लोग कहने लगे आपको कुछ नहीं पता है। बुद्ध ने सुणीत भंगी को अपने संघ में शामिल किया था। कई राजाओं ने उनकी शरण को गहा था। आप राहुल गांधी को भी नहीं जानते! वे हमारे उद्धारक हैं, उनके जीवन में सुख सुविधाओं की क्या कमी थी? लेकिन उन्होंने हमारे लिए सब त्याग दिया... वे ही समाजिक न्याय के सच्चे योद्धा हैं। उनकी ही सत्ता में "जाति जनगणना" और "समाजिक न्याय" का सपना साकार होगा।
मैंने कहा सही कहा बंधु, उदित राज, रतन लाल और राजेन्द्र पाल गौतम सुणीत भंगी ही हैं। स्टालिन और अखिलेश राजा-महाराजा हैं। ब्राह्मण सत्ता में है और कथित उदार द्विज उसको सत्ता से बेदखल करना चाहता है, इसलिए लोकतांत्रिक गणराज्य में 'इंडिया परिसंघ' का निर्माण किया है। बुद्ध ने भी जब राजपाट छोड़ा था तो युद्ध को सीधे न लडकर इसे धर्म के द्वारा लड़ा था। उस लड़ाई में दलित और आदिवासी फलक से गायब हो गये थे उनकी पहचान इनकी धर्म यात्रा द्वारा निगल ली गई थी। आज के परिवेश में भी राहुल गांधी द्वारा दलित राजनीति को भारतयात्रा जोड़ो यात्रा द्वारा निगल लिया गया। जो बचा है नाम मात्र का उसको भी नेस्तनाबूद करने के लिए सुणीत भंगी लगे हुए हैं। अब दलितों को नापने के लिए खुद राहुल गांधी या बुद्ध को कुछ नहीं करना पड़ेगा, वे खुद नपने के लिए तैयार हैं या फिर उनके अपने ही लोग नाप देंगे।
यही सच है, राजकुमार सिद्धार्थ गौतम ही आधुनिक रूप में राजकुमार राहुल गांधी हैं। दलित और आदिवासियों का घोषित दुश्मन भाजपा और संघ तो परिभाषित है। ये उदार चेहरे के साथ उनके स्वतंत्र राजनीति नेतृत्व को निगलना चाहते हैं। जैसे बुद्ध ने दलितों के धार्मिक नेतृत्व को निगलने का काम किया था। इसलिए आदर्श और न्याय की बातें करने में राजकुमार राहुल गांधी व्याकुल रहते हैं। उन्हें मालूम है जीतना ही दलित आदिवासियों की आवाज और उनके मुद्दों को उठायेंगे वे लोग कातर नजरों से मेरी तरफ ही देखेंगे! और मुझे उन पर शब्दों की करुणा बरसाना है। इसके बाद ये लोग अपने वास्तविक लोगों को किनारे लगा देंगे। इसलिए सामाजिक न्याय का विभ्रम रचना जरूरी है!
मनुष्य और प्रकृति के तादात्म्य से ही सृष्टि का सौंदर्य का निर्माण होता है। कुछ लोग मनुष्यता और प्रकृति के दुश्मन होते हैं। वे प्रेम और संवेदना से भी उदासीन होते हैं। इन में ही प्रेम, सदाचार और ईमानदारी के भाव भरने के लिए सद्गुरु रैदास और कबीर मानव बंधन से मुक्ति के गीत गाए थे। उसी चेतना का प्रसार ही एकमात्र लक्ष्य है।
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