औरंगजेब की कब्र को लेकर विवाद क्यों ? इसको सांप्रदायिकता का रंग देकर कौन राजनीतिक हित साधना चाहता है?

 भारत देश विविधताओं और आक्रातांओं का देश रहा है। बाहर से आर्य, हूण, शक, तुर्क, मुगल, पठान और ब्रिटिश, डच, पुर्तगाली अपनी भाषा, संस्कृति और धर्म के साथ, भारतीयता के मूल तत्व को छिन्न-भिन्न किया। सभी यहाँ सत्ता स्थापित करने के लिए एक दुसरे से होड़ में लड़ाई भी किये जिसमें आर्य, मुगल और ब्रिटिशों को सफलता मिली। इन्होंने लंबे समय तक हुकूमत भी करी। लेकिन बीच-बीच में मूलवासियों ने भी आजादी के लिए संघर्ष किया, ऐसे में उक्त वर्चस्वकारी शक्तियों ने आपस में गठजोड़ भी किया। आज वर्तमान भारतीय लोकतंत्र में मध्यकालीन मुगल शासक औरंगजेब को लेकर आर्य यानी हिन्दू शासक वर्ग ने सांप्रदायिक माहौल बना कर सांस्कृतिक और राजनीतिक वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं। इन पचड़ों और वाहियात मुद्दों से दलित और आदिवासियों को दूर रहना चाहिए क्योंकि सद्गुरु रैदास और कबीर जब अपनी स्वतंत्र अस्तित्व की बात किये तो दोनों ने आपसी गठजोड़ कर लिया, ऐसे में दोनों से संत गुरूओं को मुकाबला करना पड़ा। 



हाराष्ट्र में औरंगजेब की कब्र को लेकर विवाद कई ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक कारणों से उभरा है। यह कब्र छत्रपति संभाजीनगर (पूर्व में औरंगाबाद) के खुल्दाबाद में स्थित है, जहां मुगल बादशाह औरंगजेब को 1707 में उनकी मृत्यु के बाद दफनाया गया था। इस विवाद को समझने के लिए इसके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व को देखना जरूरी है, साथ ही यह भी कि इसे सांप्रदायिक रंग देकर कौन और क्यों राजनीतिक हित साधना चाहता है।


ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

औरंगजेब (1658-1707) मुगल साम्राज्य का छठा शासक था, जिसके शासनकाल में साम्राज्य अपने चरम विस्तार पर पहुंचा, लेकिन उसकी नीतियों और कार्यों ने उसे विवादास्पद बना दिया। इतिहास में उसे एक ओर कट्टर इस्लामी शासक के रूप में देखा जाता है, जिसने हिंदू मंदिरों को तोड़ा और जजिया कर लागू किया, वहीं दूसरी ओर कुछ उसे कुशल प्रशासक मानते हैं, जिसने साम्राज्य को संगठित रखा। महाराष्ट्र में उसकी कब्र का महत्व इसलिए बढ़ जाता है, क्योंकि उसने अपने अंतिम वर्ष दक्कन में मराठों के खिलाफ युद्ध लड़ते हुए बिताए। उसकी मृत्यु के बाद सूफी संत सैयद जैनुद्दीन की दरगाह के पास उसकी इच्छा के अनुसार एक साधारण कब्र बनाई गई, जो आज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है।

सांस्कृतिक रूप से, यह कब्र मराठा इतिहास के संदर्भ में संवेदनशील है। औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज (शिवाजी महाराज के पुत्र) को क्रूरता से मरवा दिया था, जिसे मराठा समुदाय आज भी एक बड़े अत्याचार के रूप में याद करता है। यह घटना महाराष्ट्र में औरंगजेब को खलनायक के रूप में स्थापित करती है। कब्र का अवशेष या प्रतीक उनके लिए उस दमन का प्रतीक बन जाता है, जिसके खिलाफ मराठों ने लंबा संघर्ष किया।


 वर्तमान विवाद के कारण

हाल के वर्षों में, खासकर 2025 में, यह मुद्दा फिर से गरमाया है। इसके पीछे कई कारण हैं:

1. फिल्म "छावा" का प्रभाव: 2025 में रिलीज हुई फिल्म "छावा" में संभाजी महाराज और औरंगजेब के बीच संघर्ष को दर्शाया गया, जिसमें औरंगजेब को क्रूर शासक के रूप में दिखाया गया। इसने जनभावनाओं को भड़काया और कब्र को हटाने की मांग को बल मिला। (इस लिंक पर छावा फिल्म की समीक्षा पढ़ सकते हैं, https://www.ajivakdarshan.com/2025/2/blog-post_21.html?m=1)

2. राजनीतिक बयान: समाजवादी पार्टी के नेता अबू आजमी ने औरंगजेब को "महान शासक" कहकर उसकी प्रशंसा की, जिससे हिंदुत्ववादी संगठनों और नेताओं में आक्रोश फैल गया। जवाब में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि लोग चाहते हैं कि कब्र हटाई जाए, लेकिन यह ASI के संरक्षण में होने के कारण कानूनी प्रक्रिया की जरूरत है।

3. हिंदुत्व संगठनों की मांग: विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बजरंग दल जैसे संगठनों ने कब्र को "गुलामी का प्रतीक" बताकर इसे हटाने की मांग की। कुछ ने तो "अयोध्या की तरह कारसेवा" की धमकी तक दी। भाजपा और संघ 80-90 के दशक में बाबरी मस्जिद को लेकर ही पूरे देश में हिन्दू राष्ट्र के उदय का उद्घोष किया था। और इसका उन्हें सांस्कृतिक और राजनीतिक लाभ भी मिला। हिन्दू जनमानस में उन्हें नायक और योद्धा के रूप में पेश किया गया जो हिन्दू राष्ट्र के लिए लड़ रहे हैं। (यह कुत्सित मानसिकता लोकतंत्र और समानता के लिए घातक है।) 


सांप्रदायिक रंग और राजनीतिक लाभ

इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देने में विभिन्न पक्षों की भूमिका दिखती है:

भाजपा और हिंदुत्ववादी संगठन: भाजपा और उसके सहयोगी संगठन इसे हिंदू गौरव और मराठा अस्मिता से जोड़कर प्रस्तुत करते हैं। फडणवीस का बयान और VHP का आंदोलन इस बात का संकेत है कि वे इसे हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं। इससे उन्हें महाराष्ट्र में अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने का मौका मिलता है, खासकर विधानसभा चुनावों के संदर्भ में। इसे ही हिन्दू धर्म और संस्कृति से जोड़ कर जन भावनाओं को भड़का कर सत्ता में आने में सफल होते रहे हैं। अब बाबरी मस्जिद की जगह रामजन्मभूमि का मंदिर बन गया है तो भाजपा और संघ के पास हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के लिए दूसरा मुद्दा चाहिए था। ऐसे में पूरानी मस्जिदों में हिन्दू प्रतीकों को लेकर सत्ता मशीनरियों का दुरूपयोग बढ़ गया है। औरंगजेब को हिन्दूपातशाही में खलनायक के रूप में प्रस्तुत कर के भाजपा और आरएसएस आगामी महाराष्ट्र और बिहार विधानसभा चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का लाभ लेना चाहती है। 

विपक्ष का आरोप: कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना (उद्धव गुट) जैसे विपक्षी दल इसे "ध्यान भटकाने की राजनीति" करार देते हैं। उनका कहना है कि सरकार भ्रष्टाचार और विकास जैसे मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए औरंगजेब जैसे ऐतिहासिक मुद्दे को उठा रही है। एनसीपी की सुप्रिया सुले ने इसे इतिहासकारों के हवाले छोड़ने की बात कही। बसपा प्रमुख मायावती ने इसे लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के खिलाफ माना है, उन्होंने अपने एक्स अकाउंट में लिखा है, - 'महाराष्ट्र में किसी भी कब्रव मजार को क्षति पहुंचाना व तोड़ना ठीक नहीं, क्योंकि इससे वहां आपसी भाईचारा, शान्ति व सौहार्द आदि बिगड़ रहा है। सरकार ऐसे मामलों में खासकर नागपुर के अराजक तत्वों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करे वरना हालात काफी बिगड़ सकते हैं, जो ठीक नहीं।' उन्होंने स्थिति को जल्द शांतिपूर्ण तरीके से निपटाने की अपील भी करी है। 

मुस्लिम संगठनों की प्रतिक्रिया: कुछ मुस्लिम नेताओं और संगठनों ने कब्र को धरोहर बताकर इसके संरक्षण की वकालत की, जिससे यह मुद्दा हिंदू-मुस्लिम तनाव का रूप लेने लगा।


 कौन साध रहा है राजनीतिक हित?

भाजपा और सहयोगी: यह स्पष्ट है कि भाजपा और हिंदुत्ववादी संगठन इस विवाद को मराठा गौरव और हिंदू अस्मिता से जोड़कर अपने वोट बैंक को मजबूत करना चाहते हैं। औरंगजेब को खलनायक बनाकर वे भावनात्मक मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन भीतर से कांग्रेस सहयोगी दल भी हिन्दू-मुस्लिम हौवा को सुलगाने का काम कर रहे हैं। क्योंकि यदि मुस्लिम हताहत होता है तो कांग्रेस उदार चेहरे के साथ उनका विकल्प बन जाएगी और हिन्दू घायल होते हैं तो उन दुख और आक्रोश के प्रति संवेदना भाजपा संघ जुड़े जाएंगे!  इसीलिए विपक्ष इसे भाजपा की "विभाजनकारी नीति" बताकर अपने सेक्युलर और समावेशी छवि को मजबूत करना चाहता है, साथ ही सरकार की नाकामी को उजागर करने की कोशिश कर रहा है।

क्षेत्रीय दल शिवसेना (शिंदे गुट) और मनसे जैसे दल भी इस मुद्दे पर अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए सक्रिय हैं।


 निष्कर्ष

औरंगजेब की कब्र का विवाद ऐतिहासिक तथ्यों और सांस्कृतिक संवेदनाओं से शुरू हुआ, लेकिन अब इसे सांप्रदायिक रंग देकर राजनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। यह न केवल मराठा इतिहास और मुगल शासन की विरासत का प्रतीक है, बल्कि वर्तमान में ध्रुवीकरण और वोट की राजनीति का औजार भी बन गया है। ASI के संरक्षण के कारण इसे हटाना कानूनी रूप से जटिल है, लेकिन भावनात्मक और राजनीतिक बहस इसे जीवित रखे हुए है।


         डा. संतोष कुमार

(साहित्यिक आलोचक और राजनीतिक विश्लेषक) 

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