आज का समय टेक्नोलॉजी और विज्ञान का है। जिस देश के पास उच्च तकनीकी ज्ञान है वह शक्तिशाली है, पहले ऊर्जा और प्रोद्योगिकी का युग था। अब तकनीकी ज्ञान में कृत्रिम बुद्धिमत्ता और सुपर कम्प्यूटर से आगे क्वांटम कम्प्यूटर के युग में दुनिया जा चुकी है। मानव सभ्यता के विकास में नई चुनौतियों के लिए उन्नत तकनीकी ज्ञान, रिसर्च और डेटा एनालिसिस टेक्नालॉजी ही मनुष्य का भविष्य है। इसी को विषयवस्तु बना कर मनोज अभिज्ञान ने लिखा है। आइए , अवलोकन करें-
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 'स्टारगेट प्रोजेक्ट' की घोषणा करके वैश्विक आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) की दौड़ में अमेरिका को शीर्ष पर पहुंचाने की योजना बनाई है। यह 500 बिलियन डॉलर का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट न केवल अमेरिका के औद्योगिकीकरण को पुनर्जीवित करने का उद्देश्य रखता है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा को भी मजबूत करने का वादा करता है। लेकिन इस परियोजना का प्रभाव केवल अमेरिका तक सीमित नहीं रहेगा। इसके दूरगामी प्रभाव भारत जैसे देशों पर भी पड़ सकते हैं, जो वैश्विक AI प्रतिभा के प्रमुख स्रोत हैं।
स्टारगेट प्रोजेक्ट को वित्तीय और तकनीकी रूप से ताकतवर बनाने के लिए दुनिया की प्रमुख कंपनियों ने सहयोग किया है। सॉफ्टबैंक, ओपनएआई और ओरेकल इसके मुख्य भागीदार हैं। सॉफ्टबैंक के सीईओ मसायोशी सोन इस परियोजना की कमान संभालेंगे। साथ ही, माइक्रोसॉफ्ट, एनवीडिया और ओरेकल जैसे तकनीकी दिग्गज इसे संचालित करेंगे। ओपनएआई इस परियोजना का प्रचालन नेतृत्व करेगा, जिससे स्पष्ट होता है कि यह परियोजना महज़ आर्थिक निवेश नहीं है, बल्कि तकनीकी प्रभुत्व की रणनीतिक योजना भी है।
अमेरिका ने ‘स्टारगेट प्रोजेक्ट’ के जरिए एक बात साफ कर दी है – अगर भविष्य पर राज करना है, तो Artificial Intelligence (AI) को हथियार बनाना होगा। यह परियोजना केवल AI इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने का सपना नहीं, बल्कि अमेरिका को तकनीकी प्रभुत्व का अडिग किला बनाने की योजना है।
सॉफ्टबैंक, OpenAI, Oracle और NVIDIA जैसे तकनीकी दिग्गजों का इस प्रोजेक्ट में आना यह दिखाता है कि यह सिर्फ आर्थिक कदम नहीं, बल्कि स्ट्रैटजी है। सॉफ्टबैंक के CEO मसायोशी सोन इसके अध्यक्ष हैं, जबकि OpenAI इसकी operational responsibility संभालेगा। Oracle और NVIDIA जैसी कंपनियां इसे तकनीकी आधार देंगी।
Stargate इंडस्ट्री और अमेरिका की सुरक्षा
‘स्टारगेट’ अमेरिका को AI के क्षेत्र में अगुवा बनाने तक सीमित नहीं है। यह प्रोजेक्ट अमेरिका की National Security को मजबूत करने और उसके Allies को तकनीकी बढ़त देने का भी काम करेगा। इसे तकनीक और जियो-पॉलिटिक्स का सबसे बड़ा कदम कहना गलत नहीं होगा। लेकिन असली सवाल यह है – इस खेल में भारत कहां खड़ा है? अमेरिका के इस कदम ने भारत के सामने कड़वी सच्चाई रखी है। अगर हमने अपनी AI क्षमताओं को तेजी से नहीं बढ़ाया, तो वैश्विक मंच पर केवल दर्शक बनकर रह जाएंगे।
भारत के लिए यह समय है कि वह अपने AI ambitions को नई ऊंचाई पर ले जाए। iCET (Initiative on Critical and Emerging Technologies) और IPEF (Indo-Pacific Economic Framework for Prosperity) जैसे प्लेटफॉर्म्स पर भारत और अमेरिका के बीच पहले से सहयोग है। अब हमें इसे एक कदम आगे बढ़ाते हुए अपने घरेलू AI ecosystem को मजबूत करना होगा। देश के पास न केवल प्रतिभा है, बल्कि वैश्विक AI कंपनियों का ध्यान भी। माइक्रोसॉफ्ट, OpenAI और NVIDIA जैसी कंपनियां पहले से ही भारत के युवाओं और यहां के तकनीकी संसाधनों का उपयोग कर रही हैं। लेकिन यह काफी नहीं है। हमें अपने संसाधनों का उपयोग खुद के लिए करना होगा। हमें ‘इंडियन स्टारगेट प्रोजेक्ट’ की शुरुआत करनी चाहिए।
सुपर पावर का नया नाम आर्टिफिसियल इंटेलीजेंसी
AI महज़ तकनीक नहीं है। यह वह शक्ति है जो 21वीं सदी में देशों की सीमाएं और उनका प्रभाव तय करेगी। अमेरिका ने यह बात समझ ली है और स्टारगेट प्रोजेक्ट के जरिए इस तकनीकी युद्ध का पहला शंखनाद कर दिया है। भारत के पास समय है, लेकिन बहुत कम। भविष्य उन देशों का होगा, जो तकनीक को केवल साधन नहीं, बल्कि अपनी रणनीतिक शक्ति मानते हैं।एलन मस्क ने डोनाल्ड ट्रंप के $500 बिलियन एआई प्रोजेक्ट ‘Stargate’ पर हमला बोलते हुए पूरी दुनिया का ध्यान खींच लिया। उन्होंने इसे सीधे-सीधे वित्तीय पतंग उड़ाने जैसा बताया और SoftBank की क्षमता पर सवाल खड़े किए। मस्क का दावा है कि इस परियोजना के लिए ज़रूरी $100 बिलियन में से SoftBank के पास $10 बिलियन से भी कम है। जवाब में OpenAI, Microsoft और Oracle ने अपनी तिजोरियां खोलते हुए $101 बिलियन का दावा किया और SoftBank ने $24.3 बिलियन दिखाए। लेकिन असली सवाल यह है—क्या यह पैसा Stargate के लिए है या यह भी सिर्फ दिखावे की बाजीगरी है? मस्क ने ट्रंप के 2017 वाले $10 बिलियन Foxconn प्रोजेक्ट की याद दिलाई, जो हकीकत में कभी धरातल पर नहीं उतरा।
यह सिर्फ अमेरिका की कहानी नहीं है। भारत में भी नेताओं का यह खेल बखूबी जारी है। हर साल निवेश शिखर सम्मेलनों में अरबों-खरबों के MoUs साइन किए जाते हैं, और उनके आंकड़े ऐसे पेश किए जाते हैं जैसे अगले ही दिन देश सोने की चिड़िया बन जाएगा। महाराष्ट्र ने हाल ही में WEF में ₹16 लाख करोड़ के MoUs साइन किए। उत्तर प्रदेश ने पिछले साल ₹32 लाख करोड़ के 18,643 MoUs का एलान किया। आंध्र प्रदेश ने ₹13 लाख करोड़ और बंगाल ने ₹3.8 लाख करोड़ के प्रस्ताव पेश किए। यह रकम इतनी बड़ी है कि सुनकर सांसें थम जाएं।
लेकिन सच्चाई चौंकाने वाली है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 2018 में यूपी के निवेश सम्मेलन में साइन किए गए 1,045 MoUs में से केवल 90, यानी मात्र 8.6% ने दो साल में निवेश का रूप लिया। हरियाणा का रिकॉर्ड थोड़ा बेहतर है, जहां 2016 के सम्मेलन के 36% MoUs 2024 तक साकार हो पाए। बाकी का क्या हुआ? वही जो ट्रंप के Foxconn प्रोजेक्ट का हुआ—आसमान में गायब।
यह अरबों-खरबों के वादे, ये आंकड़ों के खेल, महज कागजी पतंगबाजी हैं। जनता को सब्जबाग दिखाने के लिए MoUs के बड़े-बड़े आंकड़े पेश किए जाते हैं, लेकिन इनकी सच्चाई अक्सर कागजों तक ही सिमट जाती है। अगर यह निवेश वास्तव में हो रहा होता, तो भारत की अर्थव्यवस्था के हर कोने में इसका असर दिखाई देता।
एलन मस्क ने Stargate की आड़ में झूठी योजनाओं की पोल खोलने की जो हिम्मत दिखाई है, वह भारतीय नेताओं के लिए सबक है। जनता को गुमराह करने वाले ये MoUs उस कागज के वजन जितने भी नहीं होते, जिस पर उन्हें लिखा जाता है। सवाल उठाना जरूरी है—इन अरबों-खरबों की घोषणाओं का सच आखिर क्या है? क्या ये वादे सिर्फ आंकड़ों की चमक में खो जाने के लिए हैं, या कभी साकार भी होंगे?
DeepSeek और वैश्विक अर्थव्यवस्था :
DeepSeek ने आज वह धमाका कर दिया है, जिसने अमेरिकी टेक्नोलॉजी साम्राज्य की चूलें हिला दी हैं। Stargate, जो कल तक ग्लोबल AI इंडस्ट्री का नया सितारा माना जा रहा था, अचानक गायब हो गया है और nVidia जैसे दिग्गज की शुरुआत में ही 12% की गिरावट ने पूरी इंडस्ट्री को हिलाकर रख दिया है। यह केवल झटका नहीं, बल्कि संकेत है कि अमेरिका का तकनीकी वर्चस्व अब ढलान पर है।
अब निवेशकों की नजरें अमेरिका के बाहर नए ठिकानों की तलाश में हैं। एशिया और अफ्रीका की जमीन, जो लंबे समय तक उपेक्षित रही, अब भविष्य की संभावनाओं का केंद्र बन रही है। यह वह क्षण हो सकता है, जब दुनिया का तकनीकी और आर्थिक केंद्र पश्चिम से पूर्व की ओर शिफ्ट हो। लेकिन सवाल यह है – क्या हम इस ऐतिहासिक अवसर को भुना पाएंगे, या पोंगापंथी मुद्दों में फंसे रहकर इसे खो देंगे?
यह महज़ तकनीकी बदलाव नहीं है, यह शक्ति-संतुलन का नया अध्याय है। एशिया और अफ्रीका के पास संसाधन हैं, युवा जनसंख्या है और अब वैश्विक निवेश की आंखें भी इन्हीं पर टिकी हैं। लेकिन क्या हमारी प्राथमिकताएं सही हैं? क्या हम इस वैश्विक बदलाव को समझने के लिए तैयार हैं या सिर्फ भीड़ को बांधने के लिए उन्हें पुराने मुद्दों में उलझाते रहेंगे?
दुनिया बदल रही है। अमेरिका, जिसने दशकों तक टेक्नोलॉजी और इनोवेशन पर अपना आधिपत्य बनाए रखा, अब खुद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है। यह एशिया और अफ्रीका का समय हो सकता है, लेकिन यह तभी संभव है जब हम खुद को तैयार करें, अपनी क्षमताओं को पहचानें और अवसर का लाभ उठाएं।
अगर हमने यह मौका गंवाया, तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा। यह समय है पुराने मुद्दों को छोड़कर नई सोच, नई रणनीति और नई दृष्टि अपनाने का। DeepSeek ने दिखा दिया है कि साम्राज्य ढह सकते हैं – अब यह हम पर है कि हम इस बदलाव का हिस्सा बनें या गंगा में डुबकी लगाकर हर-हर गंगे करते रहें और इसे बगल से गुजरते हुए बस देखते रहें!
2.तकनीकी क्रांति की हर लहर नई उम्मीदें और आशंकाएं लेकर आती है। इस बार चर्चा का केंद्र बिंदु है चीनी एआई स्टार्टअप DeepSeek, जिसने अपने दावे से न केवल तकनीकी जगत को झकझोर दिया, बल्कि अमेरिकी बाजारों में भूचाल पैदा कर दिया। DeepSeek का दावा है कि उसने मात्र $5.6 मिलियन के खर्च में एआई मॉडल तैयार किया है, जो अमेरिकी प्रौद्योगिकी की तुलना में लगभग समान प्रदर्शन करता है। इसकी तुलना में, OpenAI के GPT-4 को विकसित करने में $100 मिलियन से अधिक का खर्च आया।
यह दावे सुनने में जितने चौंकाने वाले हैं, उतने ही रोचक भी। एआई के क्षेत्र में निवेश और अनुसंधान लंबे समय से केवल बड़ी कंपनियों का खेल रहा है। Nvidia, Broadcom और Marvell जैसी कंपनियां महंगे चिप्स और सेवाओं की मांग से फल-फूल रही थीं। इसी के चलते Microsoft, Google और Meta जैसी कंपनियां भी अपने महंगे एआई नेटवर्क्स का विस्तार कर रही थीं। लेकिन DeepSeek के इस दावे ने इस धारणा को चुनौती दे दी कि केवल भारी पूंजी वाले खिलाड़ी ही इस खेल में टिक सकते हैं।
हालांकि, बाजार की प्रतिक्रिया देखने लायक थी। Nvidia और Broadcom जैसे चिप निर्माताओं के शेयरों में भारी गिरावट आई, और Nasdaq ने 3.1% तक की गिरावट देखी। लेकिन यह बेचैनी क्या वास्तविक है, या फिर निवेशकों की जल्दबाजी का नतीजा? विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है। DeepSeek के तकनीकी दावे पर संदेह जताया जा रहा है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इतने कम खर्च में इतने उन्नत एआई मॉडल का निर्माण बिना अत्याधुनिक जीपीयू के संभव नहीं है।
फिर भी, इस घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या एआई अनुसंधान और विकास में कॉस्ट एफिशिएंसी का दौर शुरू हो गया है। यदि ऐसा हुआ, तो यह तकनीकी क्षेत्र में लोकतंत्रीकरण का संकेत हो सकता है, जहां छोटे खिलाड़ी भी बड़ी कंपनियों को चुनौती देने में सक्षम होंगे।
एआई का विकास केवल लागत पर नहीं, बल्कि अत्याधुनिक तकनीक, बड़े डेटा सेट्स और निरंतर निवेश पर निर्भर करता है। Meta, Microsoft और OpenAI जैसी कंपनियां इस दौड़ में और अधिक निवेश करने की योजना बना रही हैं। उदाहरण के लिए, Meta ने अपने पूंजीगत खर्च को $65 बिलियन तक बढ़ाने का संकेत दिया है, जबकि Stargate Project जैसी साझेदारियां $500 बिलियन तक खर्च करने की योजना बना रही हैं। यह स्पष्ट है कि DeepSeek का दावा नई प्रतिस्पर्धा की शुरुआत हो सकता है, लेकिन यह कोई खेल खत्म होने जैसा क्षण नहीं है। तकनीकी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा खर्च को बढ़ाएगी, कम नहीं करेगी; जैसा कि अतीत में स्पेस रेस ने खर्च को कम नहीं किया था, बल्कि इसे नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया था।
एआई की यह दौड़ नई दिशा में बढ़ रही है। बड़े खिलाड़ी उन्नत फ्रंटियर मॉडल्स पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जबकि छोटे खिलाड़ी कॉस्ट एफिशिएंट मॉडल्स पर काम करेंगे। इस विभाजन से न केवल नई संभावनाओं का द्वार खुलेगा, बल्कि एआई को और भी अधिक सुलभ और उपयोगी बनाने में मदद मिलेगी।
DeepSeek का यह क्षण न केवल तकनीकी क्षेत्र के लिए, बल्कि समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यदि लागत दक्षता वास्तव में सिद्ध हो जाती है, तो एआई का उपयोग उन क्षेत्रों में भी संभव होगा, जो अब तक इससे दूर थे। साफ है कि एआई युद्ध अब एक नई अवस्था में प्रवेश कर रहा है, और इसमें केवल वही टिक पाएंगे जो इस बदलते परिदृश्य के साथ अनुकूलन कर पाएंगे। DeepSeek ने भले ही हलचल मचा दी हो, लेकिन यह केवल शुरुआत है।
भारत को भी आर्टिफिसियल इंटेलीजेंसी में आगे बढ़ना होगा :
भारत के लिए यह समय हाथ पर हाथ धरे बैठने का नहीं है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के क्षेत्र में नई वैश्विक क्रांति का शंखनाद हो चुका है, और चीन ने इसका नेतृत्व करते हुए DeepSeek नामक ऐसा AI मॉडल प्रस्तुत किया है जिसने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। यह मॉडल महज़ चीन की तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह उन देशों के लिए चुनौती है जो अभी तक इस क्षेत्र में सुस्त हैं। सवाल है—भारत इस दौड़ में कहां खड़ा है?
चीन ने यह साबित कर दिया है कि तकनीक के विकास में प्रतिबंध और सीमाएं उसे रोक नहीं सकतीं। अमेरिकी प्रतिबंधों और उन्नत चिप्स की कमी के बावजूद, चीन Baidu और ByteDance जैसी कंपनियों के माध्यम से AI के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम उठा रहा है। कम लागत और तेज़ी से विकसित हुआ DeepSeek सिर्फ मॉडल नहीं है, बल्कि यह ऐसा हथियार है जो दुनिया में AI innovation के नियम बदल सकता है। अब AI सिर्फ तकनीक की दौड़ नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति का साधन बन चुका है।
दूसरी ओर, भारत के पास प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। भारतीय इंजीनियर आज भी Silicon Valley की रीढ़ माने जाते हैं, लेकिन क्या यह काफी है? AI की इस दौड़ में हमारा योगदान अभी तक दूसरे देशों की तकनीक को समर्थन देने तक सीमित है। हम दूसरों के लिए उपकरण बना रहे हैं, लेकिन खुद के लिए कुछ नहीं।
भारत को तुरंत अपनी रणनीति बदलनी होगी। हमें सिर्फ एजेंसी की नहीं, बल्कि एक dedicated AI ministry की भी जरूरत है, जो न केवल स्वदेशी Large Language Models (LLMs) का विकास करे, बल्कि AI के नैतिक और सुरक्षित उपयोग के लिए ठोस नीतियां भी बनाए। यह मंत्रालय हमारी तकनीकी जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ रोजगार, शिक्षा और समाज पर पड़ने वाले प्रभावों का भी अध्ययन करेगा। हमारे व्यापारिक ढांचे को भी AI के अनुकूल बनाना होगा। AI केवल तकनीकी क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा; यह हमारी स्वास्थ्य सेवाओं, कृषि, शिक्षा और उद्योगों में भी क्रांति लाने वाला है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या हम सिर्फ तकनीक के ग्राहक बनकर रह जाएंगे या इसे बनाने और नियंत्रित करने वाले बनेंगे? AI महज़ कोई उपकरण नहीं है; यह भविष्य की ताकत और अर्थव्यवस्था का केंद्र है। दुनिया तेज़ी से बदल रही है, और हमें तय करना है कि हम इस बदलाव के निर्माता होंगे या इसके शिकार।
Wake up, India. The future won’t wait. The question is—are we ready to lead or lag behind?
![]() |
समसामयिक विषयों पर लेखन
0 टिप्पणियाँ