प्रयागराज कुंभ की आस्था में हादसा

डा. संतोष कुमार //कल प्रयागराज कुंभ की घटना की तस्वीरें आपको विचलित कर देंगी... 








चित्र साभार: बीबीसी हिन्दी न्यूज


त्तर प्रदेश के प्रयागराज में कुंभ मेला का आयोजन शासन द्वारा किया गया। यह मेला हिन्दू संस्कृति का हिस्सा है। इस धार्मिक मेले में साधू-संतो और भक्तों के साथ मठाधीशों के अलग-अलग अखाड़े भी शामिल होते हैं। इसे प्रदेश का 76वां जिला घोषित कर चाक-चौबंद व्यवस्था की गई है। प्रदेश से 15 हजार रिजर्व पुलिस बल के साथ अन्य हजारों कर्मियों को भी प्रशासन की तरफ से लगाया है। यह आयोजन इस बार खास इसलिए भी है कि 12 वर्ष के बाद आने वाले 'महाकुंभ' के नाम से जाना जाता है। इस बार भाजपा की केन्द्र और राज्य सरकारें राजनीति माकटेल बनाने के लिए खास इंतजाम किया है। पूरे परिक्षेत्र में बिजली-पानी, सड़क, परिवहन, हास्पिटलिटी आदि का इंतजाम किया गया है। देश की आम जनता को लुभाने और हिन्दू धर्म की सांस्कृति और भाजपा की हिन्दुवाद राजनीति का पोस्ट, बैनर से सारा मेला परिक्षेत्र अटा पड़ा है। ब्राह्मणों ने इसे दैवीय, सनातनता की गौरव आभा देने के लिए कहा है कि, यह सनातन पर्व है, यह संयोग 144 वर्ष में एक बार आता है।

सत्ता लोलुप मीडिया ने इस आयोजन को लेकर चटकारे के ब्रांडिंग करी और टीआरपी बटोरी है, सोशल मीडिया पर मीम और रील बने हैं। मदारी, सपेरे, जादुगर, लंगड़े-बुढ़े, जोकर विभिन्न परिधानों में देखने को मिलेंगे। देश की अशिक्षित, साधारण जनता ने इसे देखा हिन्दुवादी मन उद्देलित होने लगा, सेलिब्रिटियों का शाही स्नान उन्हें और प्रेरित किया। नागा साधुओं का रेला जहां देखो वहीं ठेला और खेला। लोग मोटरी, गठरी, गुदड़ी माथे पर लाद कर जैसे-तैसे कुंभ नगरी प्रयाग में आने लगे। भीड़ बढ़ने लगी आने वाले ज्यादा और जाने वाले कम थे। बुद्धवार के 'मौनी आमवस्या'(एक तरह का हिन्दू पर्व) की मध्य रात्रि के बाद संगम नोज पर हजारों की तादात में सोये लोगों पर एक बड़ी भीड़ का रेला बैरिकेड्स को तोड़ कर दौड़ने लगी। थके, हारे दर्जनों किलोमीटर पैदल चल कर, सोये लोगों पर भीड़ की रेला ने दौड़ लगा दी। लोग कुचल गये, कई मर गये(तात्कालिक खबरों के मुताबिक 17 लोगों की मृत्यु हुई), सैकड़ों घायल हो गये। पिछले महाकुंभ में भी रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में सैकड़ों हाताहत हुए थे।

लाखों, करोड़ की भीड़ पर गर्व करने वाली राज्य सरकार की प्रशासनिक चकाचौंध की हेकड़ी निकल गई। मारे गए लोगों के परिजन कह रहे हैं, वहाँ घायलों का रेला लगा था कोई पुलिसिया मदद नहीं मिल रहा था, लोग हंस रहे थे! 

यह हंसी बेबसी, आस्था, अंधविश्वास, धर्म की राजनीति आदि किस पर थी? एक माह पूर्व मैं मेला परिक्षेत्र में होकर आया था तैयारियां चल रहीं थी। पुलिस फोर्स की ही भीड़ हर तरफ दिख रही थी। मैंने अपने साथी मित्र से कहा यदि इतने पुलिस फोर्स से ही यह हालात हैं तो लाखों, करोड़ों जिसका अनुमान लगया जा रहा था! की भीड़ यदि आती है तो उनकी क्या दशा होगी? वे किस जगह पर अपना पांव टिकाएंगे और देंह को कैसे डोलायेंगे?


उक्त घटना का जिम्मेदार कौन? 


पुलिस? मीडिया? धर्म के मठाधीश? या फिर राज्य और केन्द्र की सत्ताएं? किसे दोष दें? कौन लेगा नैतिक जिम्मेदारी? इन मौतों की सजा किसे मिलेगा? कौन होगा दोषी? इन चंद सवालों के जवाब आपको विचलित कर देंगे लेकिन उक्त सभी का दोष है, इन मौतों में। भीड़ का आयोजन राज्य की प्राथमिकता में यदि शामिल थी तो दोष उसे ही जाता है। धार्मिक मठाधीशों ने यदि अपने भक्तों की भीड़ इकट्ठा करी है तो दोष उनका भी होता है। रंग-बिरंगे आयोजन की झलकियाँ और अतिश्योक्ति पूर्ण प्रवचन की झलकियों का प्रशासरण करना और भीड़ में आने के लिए विज्ञापन देकर उकसाना भी इसमें शामिल है और मीडिया भी दोषी है। शामिल हैं, वे नेता जो इस धार्मिक आयोजन का राजनीतिक दोहन करने के लिए प्रोत्साहित करते रहे हैं, पहले से। 


मध्यकाल में सद्गुरु रैदास और कबीर ने नदियों को प्राकृतिक नजरिये से देखा था और उस के बायोलॉजिकल फार्म, जल को ही स्वीकार किया था। उसकी पवित्रता इत्यादि के पाखंड पर गहरा सवाल किया था। और अपने लोगों को भीड़ की हिंसात्मक कार्यक्रम से सचेत भी किया था। 



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