पाताल लोक की दुनिया और हाथीराम चौधरी

 सिनेमा में एक नया प्रयोग वेब श्रृंखला(Web Series) की चल रही है। दुनिया में इसकी सरहाना भी हो रही है। 

हिन्दी सिनेमा में यह प्रयोग नये दर्शक दीर्घा को खूब भा रहा है। सिनेमा कार्पोरेट में इस पर काफ़ी बजट भी खर्च हो रहे हैं। इंटेरनेट की दुनिया में सिनेमा के रिलीज होने का प्लेटफार्म भी बदल रहा है। वैश्विक पटल पर 'नेटफिलिक्स' का दबदबा है। अमेजान प्राइम पर रिलीज 'पाताल लोक' का दूसरा सीजन आ चुका है। लोख खूब चाव से देख रहे हैं। लेकिन इस दूसरे भाग में हिन्दी भाषी उबने लगते हैं कारण है कहानी का दिल्ली से सीधे नागालैंड का जुड़ाव और उस पृष्ठभूमि में अंग्रेजी के छौंक नागालैंडी भाषा की अधिकता लोगों में संत्रास पैदा करता है। 

पहले सीजन में जहाँ एक साइको किलर की कथा थी और भाषा हिन्दी के साथ क्षेत्रीय बोलियों के साथ जातिय हिंसा और इस्लामोफोबिया जैसे हाट-बाटम हो उठता हुआ आया था। वहीं दूसरा सीजन सूक्ष्म और नागालैंड की गंभीर विषय को उठाती है। ब्यूरोक्रेट, कार्पोरेट और जनजातिय संघर्ष की घरेलू हिंसा और ड्रग्स में फंसे राज्य की मार्मिक कथा है, पाताल लोक। 


                           (निर्माता : सुदीप शर्मा 

                                 कलाकार : जयदीप अहलावत, इश्वाक सिंह, तिलोत्तमा शोम, 

                                 मेरेनला इमसाॅन्ग, एलसी सेखोसे, नागेश कुकुनूर

                                 एपिसोड :8

                                 रन टाइम : 45-47

                                 कहानी: हाथीराम चौधरी और एसीपी अंसारी  अलग-अगल मर्डर केस की इन्वेसटीगेशन                                     करते हैं और दोनों के उभरते संघर्ष एक-दूसरे जुड़ कर नागालैंड की ओर संकेत करते हैं।


पाताल लोक की कहानी 

हाथीराम चौधरी रघू पासवान की हत्या की जांच के लिए एक गोदाम में जाता है, जहाँ उसे ड्रग्स की बड़ी खेप का पता चलता है। और अपने सीनियर साथी अंसारी की मदद से रेड करवाता है लेकिन पुलिस विभाग के भेदभावपूर्ण व्यवहार से उसको क्रेडिट नहीं मिलती है। 

फिर एक दिन नागालैंड बिजनेस सबमिट में थामस नाम के एक ट्राइबल नेता की हत्या हो जाती है। जिसके इन्वेसटीगेशन का चार्ज एसीपी अंसारी को मिलता है और साथ में रघु की हत्या के तार दोनों घटनाओं को जोड़ देती है। दोनों नागालैंड की ओर प्रस्थान करते हैं, जहां उन्हें स्थानीय पुलिस प्रशासन आंशिक मदद तो मिलती है लेकिन हत्या की गुत्थी कई रहस्यमयी कथाओं से खुलती है। नागालैंड का परिवेश, विकास माडल, स्थानीय रेबेल ग्रुप का विरोध, ड्रग्स यौन शोषण, हिंसा आदि जैसे कडियों को जोड़ पाताल लोक को मनोरंजक बनाया गया है। 

हम विकास के वादों और पूर्व विद्रोहियों के हथियार छोड़ने की बात सुनते हैं। तिलोत्तमा सोम ने मेघना बरुआ नाम की पुलिस अधीक्षक की भूमिका निभाई है - निगामी एक क्रियोल भाषा है, जिसमें असमिया और बंगाल

 प्रभाव है, और शोम बंगाली हैं। इसीलिए शर्मा और शोम के सह-कथा लेखन ने सामी-बंगाली का मिक्सअप तैयार किया है जयदीप अहलावत हरियाणवी जाट पुलिस अधिकारी की भूमिका में जबरदस्त एक्टिंग किया है। भारी-भरकम देह, घनी मूछें और भाग-दौड़ हास्य भाव भी पैदा करते हैं। 


अंकल केन पुराना नागालैंडी स्वतंत्र सेनानी हैं, उनका जनजाति समाज में एक अहम मुकाम है। लेकिन बिजनेस मैन रेड्डी के साथ रेबेल ग्रुप के मुखिया थामस विकास के नाम पर बाहरी घुसपैठ का विरोधी है। इसलिये अंकल केन थामस की हत्या कर देता है और अपने गोद लिये बेटे के द्वारा थामस के ग्रुप का एक-एक मेंबर का सफाया करा देता है। नागालैंड सबमिट के मार्ग में जो कोई भी आता है वह मारा जाता है। रोजी के ऊपर थामस की हत्या का आरोप लगता है लेकिन अंसारी और हाथीराम जब जांच करते हैं तो रोजी की कहानी और थामस की कहानी में बड़े खुलासे होते हैं। रोजी थामस की रखैल होती है, उसकी एक बेटी थामस से होती है, जबकि थामस रोजी से पहले रोजी की मां से भी अवैध संबंध बनाने की कहानी सामने आती है, इस रूप में रोजी एक तरह से थामस की बेटी होती है। इतर थामस के दो चेहरे सामने आते हैं। थामस की वास्तविक बेटी इस कृत्य से आहत होकर आत्महत्या कर लेती है और थामस का बेटा रूबीन भी केन का शिकार हो जाता है। 


ड्रग्स माफिया और नागालैंड सबमिट मुख्य मुनाफाखोरी रेड्डी साफ बच जाता है जबकि थामस को ठगने और नागालैंड रेबेल ग्रुप का उपयोग अपने लिए करने में उस मुख्य हाथ होता है। ब्यूरोक्रेट, पूंजीपति और देशी जनजातिय नेताओं के गठजोड़ का काकटेल पेश करता है, पातालोक का दूसरा सीजन! 

डा. संतोष कुमार 

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