सामाजिक बुनावट की 'अजीब दास्तान'

 डा. संतोष कुमार: पहले सिनेमा की समयावधि कहानी के प्लाट पर प्राय निर्भर करती थी। अब फिल्मों का समय 1:20 मिनट हो गई है। वेब सीरीज के आ जाने से धारावाहिक के प्रति बढ़ती अरूचि को स्थिरता मिली है। सिनेमा में एक नये प्रयोग का दौर चल रहा है। एक ही फिल्म के भीतर कई कहानियों को दीखाना। साहित्य में इसे शार्ट स्टोरी यानी लघुकथा के नाम से भी जाना जाता है। इस ऐंथोलाजी के प्रयोग ने दर्शकों की टेस्ट को समझ लिया है। छोटे प्लाट को नये संदर्भों के साथ प्रस्तुत करने की अचूक विधि है।

नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीमिंग

नेटफ्लिक्स- प्लेटफार्म

Ajeeb Dastaan एक Anthology यानी संकलन है, जिसमें चार अलग-अलग कहानियों में ऐसी आकस्मिक घटनाओं का दर्शाया गया है। जिसमें इंसान परिस्थितियों के आगे विवश, रिश्ते नाते, पति-पत्नी के मध्य घुटन, अवैध संबंध, हत्या, हकदारी और जातिभेद के अहम पहलूओं को बड़ी ही बारिकियों के साथ दिखाया गया है। चारो फिल्मों की कहानियों में महिलाओं के सशक्त चरित्र खड़ा किया गया है। खासकर राज मेहता और नीरज घेवान की फिल्में 'खिलौना' और 'गीली-पुची' इस ऐंथोलाजी को काफी दिलचस्प और सस्पेंस बनाने के साथ समाज में व्याप्त ऊँच-नीच के भाव को दर्शाती है। 16 अप्रैल 2021 से नेटफ्लिक्स पर यह फिल्म स्ट्रीम कर रही है। 

मजनू फिल्म का दृश्य बबलू, लिपाक्षी और राज

'मजनू' 

इस कहानी का लेखन और निर्देशन शंशाक खेतान ने किया है। इसमें बड़ी बात समलैंगिक संबंध और जारकर्म को मुख्य रूप से आया है। लेकिन कहानी को हल्के ढंग से हांक दिया गया है। लिपाक्षी(फातिमा सना शेख) और बबलू(जयदीप अहलावत) एक नवविवाहित जोड़ा हैं, जिनकी शादी दो परिवारों के राजनीतिक गठबंधन की शादी है। बबलू शुरू में तो बाहूबली टाइप का लगता है। जिसके अवैध धंधे हैं और उनको चलाने के लिए नौकर चाकर हैं। बबलू एक मौके पर अपनी पत्नी लिपाक्षी से कहता है, - 'हम किसी और से प्यार करते थे तो आपसे कभी प्यार नहीं कर पाएंगे। साॅरी नहीं कहेंगे क्योंकि इस शादी से दोनों परिवारों को फ़ायदा हुआ है।' लिपाक्षी कुछ देर ठिठकती है फिर गुस्से के साथ कहती है, 'इस देश के सारे मर्द ढोंगी क्यों होते हैं?' बबलू अपनी पत्नी का सारा ख्याल रखता है। लेकिन लिपाक्षी को तो प्यार चाहिए, वह डरने या एक रिश्ते में बंधकर रहने वाली महिला नहीं। इस कमी को पूरा करता है। बबलू के ड्राइवर का बेटा राज (अरमान रहलान) जो कि विदेश से पढाई कर के लौटा है। लिपाक्षी सीधे उस पर डोरे डालती है लेकिन राज छूप कर उसके उस से मिलना चाहता है। क्योंकि बबलू उसे अच्छी तनख्वाह पर अपने यहां काम पर रखा हुआ है। और अपना छोटा भाई मानता है। लेकिन राज मिश्रा का इरादा कुछ और होता है। लिपाक्षी को अपने प्रेम के जाल में फंसा कर बबलू का सारा पैसा हजम कर लेता है और एक चिट्ठी में लिखा मिलता है कि - तुमने मेरे बाप का एक छोटी गलती पर टांग तोड़ दी थी उसका बदला है। फिल्म में तकनीकी के गलत इस्तेमाल का भी दृश्य दिखाया गया है, जिसमें राज लिपाक्षी के साथ के एमएमएस में से एआई के जरिये चेहरा बदल कर बबलू को डाइवर्ट करता है और आनलाइन ट्रांजेक्शन के थ्रू सारी रकम अपने विदेशी अकाउंट में ट्रांसफर कर लेता है। 

खिलौना फिल्म का दृश्य 

'खिलौना'

चारों कहानियों में से यह एक आपको सस्पेंस से भर देगी, बेचारगी, अभाव और कुंठित मन का द्वंद तथा सुलगते मन की आग कहानी को सरप्राइज करने में सफल होती है। फिल्म के निर्देशक हैं, राज मेहता। कहानी समाज को दो वर्गों में बांटती है। एक कोठीवाले... और दूसरे होते हैं कटियावाले यानी मजदूर वर्ग। मीनल(नूसरत भरूचा) और सुशील एक दूसरे प्रेम करते हैं और बिना शादी किये साथ रहते हैं। मीनल कोठी में खाना बनाने और बर्तन मांजने का काम करती है, उसके माता-पिता नहीं, एक छोटी बहन बिन्नी होती है जिसको पढाती है। एक दृश्य में मीनल सुशील से कहती है - 'ये कोठी वाले किसी के सगे नहीं होते हैं।' 

मीनल की कटिया मुहल्ले के लोग उतरवा देते हैं, इससे मीनल की छोटी बहन बिन्नी टीवी नहीं देख पाती है, उसे नींद भी नहीं आती है। यह टीवी गरीब मजदूर जीवन में खुशियों से जोड़ कर देखा गया है। मीनल के ऊपर मुहल्ले के सेक्रेटरी की बूरी नज़र होती है, लेकिन इसे एक अवसर के रूप में लेकर मीनल अपना कटिया जोड़वाना चाहती है। सुशील को इस बात पर गुस्सा आता है। लेकिन वह कर क्या सकता है रोजी-रोटी का सवाल उस पर भी है। सुशील कपड़े प्रेस करने काम करतार है जहां मीनल आकर हंसी-मजाक करती है। एक दिन सेक्रेटरी यह देखकर सुशील के साथ मार-पीट करता है। दूसरे दिन मीनल को अपने यहां काम पर रखता है। उसकी पत्नी पेट से होती है। इसलिए वह मीनल पर आसक्त होता है और कटिया जोड़ने के बदले मीनल से सेक्स संबंध बनाना चाहता है। एक दिन समय देखकर मीनल को धरदबोचता भी है, यह सब मीनल की छोटी बहन बिन्नी देखती है, उसके अंदर कहीं न कहीं बाल मनोकुंठा का भाव जन्म लेता है। जब कोठी में सेक्रेटरी की पत्नी को बच्चा होता है तो मीनल पुचकारते हुए उसे दुलार करती है। इससे बिन्नी को लगता है कि वह उस से ज्यादा दूसरे बच्चों को चाहती है, एक दिन सुशील के साथ संभोग करते मीनल को देख लेती है और तरह-तरह के सवाल करती है और पूछती है, 'तुम भी लल्ला पैदा करोगी?' तो वह आश्चर्यचकित होती है। सेक्रेटरी के रूखे व्यवहार से मीनल और सुशील दुखी भी हैं और यौन शोषण, उत्पीड़न के खिलाफ विद्रोह से भरा मन बदला लेने को आकुल भी है। 

           कोठी में बच्चे के जन्म की खुशी में पार्टी होती है जहां मीनल, सुशील और बिन्नी भी काम करने के वास्ते निमंत्रित हैं। थोड़ी देर के बिजली गुम होती है और कोठी का चिराग भी हमेशा के लिए गुम हो जाता है। कुकर में उबलते सीटी के साथ खून निकलता है। इसी एक वीभत्स दृश्य के साथ मूवी खत्म हो जाती है। 

भारती मंडल और प्रिया शर्मा, फिल्म गीली-पुची 

'गीली-पुची'

यह कहानी नीरज घेवान द्वारा निर्देशित है, जिसमें एक साथ कई पहलुओं पर दृष्टांकन किया गया है। जातिभेद और लेस्बियन जैसे ज्वलंत मुद्दों को कोंकणा सेन (भारती मंडल) और अदिति राव हैदरी (प्रिया शर्मा) के उम्दा कलाकारी फिल्म में नयापन लाता है। 

भारतीय समाज में एक वर्ग विशेष के विशेषाधिकार और उच्चता के भाव ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपने चंगुल में ले रखा है। इसीलिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था की गयी है। लेकिन निजी संस्थानों और फैक्ट्रियों में उच्च पदों पर एक वर्ग विशेष को ही जगह मिलती है, भले ही वह अयोग्य हो! 

यही इस फिल्म की धूरी है और इसी विषय संयोजन के साथ फिल्म की शुरुआत होती है। भारती मंडल बतौर मशीन-मैन फैक्ट्री में काम करती है, जहां लम्बे समय से डाटा आपरेटर का पद पाने की कोशिश कर रही होती है। अपनी योग्यता पर उसे पूरा भरोसा है क्योंकि कम्प्यूटर संचालन की कुशलता के साथ कामर्स में 74% प्रतिशत के साथ स्नातक भी है। किन्तु मैनेजर द्वारा उसे केवल तारीफ़ मिलती क्योंकि वह पिछड़े समाज की दलित है। फैक्ट्री का मालिक उसकी जगह नयी लड़की प्रिया शर्मा को ज्वाइन कराता है जो कि ब्राह्मण जाति की है। भारतीय मंडल को जब इस बात की खबर होती है तो वह नाराज होती है इस पर उसका सजातीय मजदूर उसको समझाता है, - 'यदि तुम्हारे नाम के साथ, पांडेय, बैनर्जी, अग्रवाल, सिंह और शर्मा जुड़ा होता तब न वह पद मिलता! ये लोग हम लोगों को उचे पदों पर देखना नहीं चाहते। यदि ज्यादा विरोध या विद्रोह करोगी तो किसी जगह लाश मिलेगी!' यही चिन्ता का भाव शून्य पैदा करता है। लेकिन भारती मंडल संघर्षों में पली-बढ़ी अदम्य जिजीविषा की महिला है। अपने दुख को छूपाकर मजबूत किरदार पैदा करती है, इसलिए एक उद्दंड सहकर्मी के अश्लील कमेंट पर नाक तोड़ देती है। इससे प्रभावित होकर प्रिया शर्मा उसकी तरफ आकर्षित होती है और दोनों विपरित मिजाज और जाति के होने बावजूद नजदीक आते हैं। भारती प्रिया से नाम पूछने पर अपना टाइटल बैनर्जी बताती है। लेकिन उसके हावभाव और रहन-सहन प्रिया के परिवार से भिन्न होते हैं। अपने जन्म दिन पर प्रिया भारती को घर बुलाती है वहां जाकर भारती अपने को उन लोगों से भिन्न और अलग बहसूस करती है यही इस देश और समाज की सच्चाई है। अगले ही पल प्रिया की सास कहती हैं, सोच समझकर रिश्ते औ साथी बनाया करो अगले वर्ष तुम्हारे ससुर महंथ बनने वाले हैं।' इस कर्मकांड परिवार में प्रिया का दम घुंटता है और वह पति-पत्नी की तरह जीवन से निराश है क्योंकि वह स्कूल टाइम में लेस्बियन जीवन जी रही होती है और उसकी महिला साथी का विवाह हो जाने से वह अकेली और दुखी होती है। यह प्रिया भारती से इंटिमेट होकर बताती है। कुछ इसी तरह का जीवन भारती के अतीत का भी रहता है। दोनों अपने अतीत के घाव को धोकर एक होना चाहती हैं। लेकिन प्रिया शर्मा का ब्राह्मण मन सब कुछ पाने को चाहता है, पति, लेस्बियन साथी, संस्कारी बहू और नौकरी आदि। पर, भारती तो खुली किताब यथार्थ जीवन जीना जानती है। एक दिन बात-बात प्रिया बताती है कि उसे डाटा आपरेटर काम नहीं आता है, एक्सल, टैली आदि, इसी की धौंस देकर मालिक भारती को चुप कराया होता है। तब प्रिया बताती है कि मेरे इंतरव्यू तो कुछ पूछा नहीं गया, परिवार के बारे में तथा ससुर यहां के महंथ हैं इसलिए सब जानते हैं और मैं पुस्तैनी हस्तरेखा और कुंडली देखने का काम जानती थी। बस! क्या था मैनेजर सर की हथेली देखकर आठ दस दोष गिना दिया! इससे भारती को आश्चर्य होता है और ब्राह्मण के वर्चस्व और चालाकी ज्ञान भी। भाव संवेदना में आकर प्रिया की हथेली चुमकर अपने दलित होने की हकीकत से अवगत कराती है तो वह हाथ खींच लेती है और बात काटकर चली जाती है। यह सूक्ष्म दृश्यांकन फिल्म को मजबूत आधार प्रदान करते हैं। प्रेम के इजहार और जाति जानने के इन्कार का वकाया दलित साहित्य के मूर्धन्य लेखक ओम प्रकाश वाल्मीकि की आत्मकथा 'जूठन' में भी आया है जब एक ब्राह्मण लड़की उनकी जाति जानकर प्रेम संबंध खत्म कर लिया था। अनजाने में ही वह विवाह के सपने भी देख लिये थे। ठीक इसी तरह का मोड़ इस फिल्म में भी आया है। उसके बाद प्रिया और उसके परिवार का व्यवहार बदल जाता है। प्रिया भारती से कहती है, उसके पति बच्चा चाहते हैं और वह उसको इसमें मदद करे क्योंकि भारती की मां आसनशोल में दाई का आम करती हैं इसलिए उसे भी जच्चा-बच्चा की जानकारी पुश्तैनी मिली होगी। भर्ती मदद करती है और प्रिया अपने स्वाभाविक जीवन में लौट जाती है। गर्भवती होने पर जब वह उसके काम टेकओवर कर लेती है तो मैंनेजर उसके कार्यकुशलता से आश्चर्यचकित होता है। एक दिन भारती प्रिया से मिलने उसके घर जाती हैं तो उसको अलग कप में चाय मिलती है। अंदर का विद्रोह मन प्रिया को कचोटता है और जहां उसे सास के समर्थन में भारती की बात सुनती है तो उसका दिल टूट जाता है और अपने काम से इस्तीफा दे देती है। 

फोटोग्राफर और नताशा, फिल्म अनकही


'अनकही' 

आखरी कहानी जो चौथी है, कायोज ईरानी द्वारा निर्देशित है। कहने को यह सिंपल लेकिन एक गहरा और मौन संदेश देने में सफल है। नताशा(शेफाली शाह) और रोहन (तोता राय चौधरी) की बेटी है समाया, जिसके सुनने की क्षमता धीरे-धीरे खत्म हो रही है। नताशा साइन लैंग्वेज सीखती है और अपनी बेटी से बातचीत करने की वजह से नजदीक होती है। लेकिन काम के दबाव और समय न मिलने के कारण रोहन साइन लैंग्वेज नहीं सीख पाता है जिसके कारण वह अपनी बेटी से दूर होने के साथ पत्नी से भी दूर हो जाता है। इस बीच बिगड़े रिश्तों की धरार में एक फोटोग्राफर (मानव कौल) का पदार्पण होता है। जो बोलने और सुनने में अक्षम है लेकिन साइन लैंग्वेज उसको बखूबी आती है। नताशा उसके नजदीक आती है। एक तरह से इक्ट्रा मैरिटल अफेयर का मोड़ आता है। लेकिन नताशा कमाऊ पति और बेटी को छोड़कर बहरे और गुंगे के प्यार को छोड़ देती है। क्योंकि अब उसका पति बेटी समायरा के साथ बोलना और खुश रहना सीख लिया है। तो नताशा का यह टाइम पास अफेयर दरवाज़े के बंद होने के साथ खत्म हो जाता है। 


सिनेमेटोग्राफी की बात करें तो 'मजनूँ' में पुष्कर सिंह, 'खिलौना' में जिश्नु भट्टाचार्या, 'गीली-पुची' में सिद्धार्थ दिवान और उजमा खान ने कमाल कर दिया है। चारों पटकथाओं की लय कहीं फास्ट तो कहीं धीमी है। लेकिन तीसरी कहानी गीली-पुची में नीरज घेवान का निर्देशन और सिद्धार्थ दिवान के सिनेमेटोग्राफी ने कमाल कर दिया है। समाज के अहम पहलू जातिवाद के सूक्ष्म चरण निजी क्षेत्र में नौकरियों में लेकर हो रहे भेदभाव को उजागर करती है। उसी तरह कोंकण से और हैदरी ने अद्भुत अभिनय, खासकर भारती मंडल के किरदार में कोंकणा से डूब गई हैं। 


निष्कर्ष 


हम फिल्मों को मनोरंजन के नजरिए से अलावा समाज में प्रेषित संदेशों के लिए भी देखते हैं। चारों कहानियों में एक विषय जारकर्म यानी अवैध संबंध कामन फैक्टर के रूप में सामने आया है। मजनू में बबलू की पत्नी, खिलौना में मीनल और सुशील के बीच, गीली-पुची में भारती और प्रिया के बीच और अनकही में नताशा और फोटोग्राफर के बीच। समाज में बुराई की जड़ और अपराध की जननी यह जारकर्म ही है लेकिन सिनेमा और साहित्य में इसे मनोरंजन की तरह लिया जाता है। जबकि वैवाहिक जीवन में यह जहर घोलने का काम करता है। इसी के आगोश में व्यक्ति गंभीर से गंभीर अपराध कर डालता है। इससे मानवता और विवाह संस्था को खतरा है इसीलिए इस पर रोक लगनी चाहिए। 











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