डा. संतोष कुमार // धर्म की अपनी एक ताकत होती है। दुनिया के किसी हिस्से में मौजूद हो, किसी भौगोलिक परिस्थिति में अवस्थित हो उसका अपना अलग ही प्रभाव होता है। पिछले दिनों बांग्लादेश क्रांति ने मौजूदा शेख हसीना की सरकार को उखाड़ फेका। क्रांति, आंदोलन और संघर्ष तीन ऐसे आवश्यक जनसरोकार से जुड़े तत्व हैं जिनसे माध्यम से पीड़ित विद्रोह करता है। इसमें हिंसा, आगजनी और अघोषित सामुदायिक अपराध होते ही हैं। अभी बांग्लादेशी सरकार अस्थिरता के दौर से गुजर रही थी। 17 करोड़ की आबादी वाले इस मुल्क में 8% अल्पसंख्यक हिन्दू समाज के लोग हैं। जो लगातार लक्षित हिंसा का आरोप मौजूदा प्रशासन पर लगा रहे हैं।
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चिन्मय कृष्ण दास को बांग्लादेशी मेट्रोपॉलिटन पुलिस के गिरफ्त में |
हिंसात्मक प्रतिक्रिया क्यों?
भारत एक वृहद लोकतांत्रिक मुल्क है, जहाँ की आवाम् प्रायः प्रेम और भाईचारे के साथ रहती आई है। लेकिन 2014 के अति कट्टरवादी दक्षिणपंथी भाजपा के सत्तासीन होते ही। मुस्लिम अल्पसंख्यक हितों की अनदेखी, माबलिचिंग, गाय और मस्जिद को लेकर प्रायोजित हिंसा, तीन तलाक और नागरिक अधिकारों में छेड़छाड़ जैसे अनेक मुद्दों की लेकर भारतीय अल्पसंख्यक मुस्लिमों ने दुनिया से गुहार लगाई, आंदोलन किये और बहुतों को जेल हुई अनगिनत मारे गये। भारतीय मीडिया ने तो इसको सरकार के दबाव में दबाया लेकिन सोशल मीडिया ने दुनिया को अवगत करा दिया। इसके प्रतिक्रिया स्वरूप मुस्लिम मुल्कों में हिन्दू नागरिकों को कष्ट उठाने पड़े। बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत समर्थित थीं। इसलिए उन्होंने भारत में शरण भी लिया है। इसकी भी जनप्रतिक्रिया बांग्लादेश में देखने को मिलता रहा है। लेकिन बांग्लादेश देशी अल्पसंख्यक (जिसमें केवल हिन्दू नहीं बल्कि दलित और आदिवासी जातियां भी हैं) को भड़काने के लिए चिन्मय कृष्ण दास ने अपने ISCON अनुयायियों के साथ सरकार के विरोध में भड़काने वाले भाषण दिये। इस पर सरकार ने देश द्रोह के आरोप में उनको गिरफ्तार कर लिया।
ISCON (International Society for Krishna Consciousness, अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ) का इतिहास
इस्काॅन कोई धर्म नहीं बल्कि ब्राह्मण यानि हिन्दू धर्म की एक शाखा है। इस की जड़ें वैष्णव धर्म से जुड़ी हैं। जिसकी स्थापना चैतन्य महाप्रभु ने मध्यकाल में कई थी। चैतन्य महाप्रभु का जन्म 1486 में नदिया जिला, पश्चिम बंगाल में और मृत्यु 1534, पुरी, उड़ीसा में हुआ था। इन्हें गौरांग ब्राह्मण, विश्वम्भर मिश्र, गौरहरि आदि नामों से जाना जाता है। सगुण भक्ति आंदोलन के प्रमुख कवियों में इनका नाम आता है। जबकि निर्गुण (निर्वर्ण, जो वर्णव्यवस्था से बाहर हो) आंदोलन भी समानांतर सद्गुरु रैदास और कबीर के नेतृत्व में चल रहा था। जो दलित, पिछड़े और आदिवासियों का स्वतंत्र धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आंदोलन था। मध्यकाल में हिन्दू-मुस्लिम के सांप्रदायिक माहौल में हिन्दुत्व की रक्षा के लिए एक नये धार्मिक संगठन 'वैष्णव धर्म' का सूत्रपात किया। और वृंदावन को अपनी शरणस्थली बनाकर कार्य निष्पादन किया, बाद में वह मठ के रूप में विख्यात हुआ। इनके दर्शन और विचार को आगे बढ़ाने के लिए इनके शिष्यों ने तीन ग्रंथ लिखे। कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने 'चैतन्य चरितामृत', वृंदावन दास ठाकुर ने 'चैतन्य भागवत' और लोचनदास ठाकुर ने 'चैतन्य मंगल' की रचना की। जिसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली।
चैतन्य का जन्म बंगाल में होने की वजह से इसका व्यापक प्रभाव अविभाजित बांग्लादेश में भी पड़ा। गौड़िय वैष्णव धर्म के सरस्वती गोस्वामी ने अपने शिष्य स्वामी प्रभुपाद अपनी शाखा के वैश्विक उत्थान के लिए कहा, इसलिए प्रभुपाद ने 1966, न्यूयार्क सिटी में इस्काॅन की स्थापना की। और वैष्णव पूजक कृष्ण के उपासक हो गये। इसे संक्षेप में 'हरे कृष्णा आंदोलन' के नाम से भघ जाना जाता है। स्वामी प्रभुपाद के अथक प्रयासों से दस वर्ष के भीतर ही समूचे विश्व में 108 मंदिरों का निर्माण हो चुका था। इस समय इस्काॅन समूह का लगभग 400 से अधिक मंदिरों का जाल बिछा हुआ है।
इस पंथ के चार स्तंभ हैं,
तप: किसी प्रकार का नशा नहीं। चाय, काफी भी नहीं।
शौच: अवैध स्त्री /पुरुष गमन नहीं।
दया: मांसाहार / अभक्ष्य भक्षण नहीं। (लहसुन प्याज भी नहीं)
सत्य: जुआ नहीं। (शेयर बाजारी भी नहीं)
जितने सिद्धांत बनाये गये हैं उन सब को उनके अराध्य श्रीकृष्ण ने अवहेलना किया है। अपनी पत्नी को छोड़कर कर राधा और गोपियों के साथ रास रचाये यानी 'शौच' की अनुज्ञा। कृष्ण के पारिवारिक कलह में जुआ में स्त्री को लगाना इत्यादि। फिर भी ब्राह्मण के लिए हिन्दू धर्म अनिर्वचनीय बना हुआ है। इस्काॅन के अनुयायी विश्वभर में श्रीमद्भागवत गीता एवं सनातन संस्कृति का प्रचार करते हैं। इसका मुख्यालय माया, पश्चिम बंगाल है।
ISCON बंग्लादेश शाखा के अध्यक्ष चिन्मय दास और सनातन संस्कृति का विवाद
सनातन जागरण मंच के संस्थापक अध्यक्ष चिन्मय कृष्ण दास को 25 नवंबर, 2024 को ढाका मेट्रोपोलिटन पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया, जिसके बाद प्रतिक्रिया स्वरूप चटगांव के शाहबाग मोहल्ले में विरोध प्रदर्शन हुआ। इसके बाद प्रदर्शन में हिंसक झड़पें हुईं। धार्मिक हिन्दू नेता चिन्मय दास के अनुयायियों और आवामी लीग छात्र के बीच झड़प के दौरान कृष्ण दास के सरकारी वकील सैफुल इस्लाम की हत्या कर दी गई। उसी दिन भारत और बांग्लादेश के राजनयिक रिश्तों में तनाव आ गया और वाक् युद्ध शुरू हो गया। भारत के गृहमंत्री और आरएसएस के दत्तात्रेय होसबोल ने चिन्मय दास के गिरफ्तारी पर चिन्ता जाहिर की। यह तब हो रहा है जब भारत में चिन्मयदास के हमउम्र बागेश्वर के धीरेन्द्र शास्त्री सनातन जागरण रैली निकाल रहे हैं। लेकिन इससे भी बढ़ कर चिन्मय दास ने यूनुस की अंतरिम सरकार का विरोध कर अल्पसंख्यक हिंसा का आरोप लगाया। बौद्धों और ईसाइयों के नाम पर चिन्मय दास पर राजनीति करने का आरोप लगा है। गौड़िय वैष्णव परम्परा के भीतर एक अग्रणी सनातनी संगठन" ने लगभग 30000 लोगों के साथ 1 नवंबर, 2024 को रैली निकालकर विभिन्न मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाना चाहते थे। भारत में भी रैलियों के द्वारा बांग्लादेशी हिन्दू अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए सरकार से मांग की गई थी।
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