'वे धन्य हैं जो अनुभव करते हैं कि जिन लोगों में हमारा जन्म हुआ है, उनका उद्धार करना हमारा कर्तव्य है। धन्य हैं वे, जो गुलामी का खात्मा करने के लिए सब-कुछ न्योछावर करते हैं, और धन्य हैं वे जो जो सुख और दुख, मान और सम्मान, कष्ट और कठिनाइयों, आंधी और तूफ़ान की परवाह किए बिना तब तक संघर्ष करते रहेंगे, जब तक कि अस्पृश्यों को उनके मानवीय अधिकार न मिल जाएं।' डा. अम्बेडकर
चियान बिक्रम, तंगालन के रूप में |
संतोष कुमार // पा. रंजीत तमिल सिनेमा के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। उन्होंने 'तंगालन' नाम से बहुजन समाज के जीवन दर्शन तथा इतिहास पर फिल्म का निर्माण किया है।
जिसके प्रोड्यूसर हैं, K. E. Gnanavelraja और लेखन तथा डाइरेक्शन खुद PA. Ranjith ने किया है। मुख्य भूमिका में Chiyan bikram हैं। पटकथा की समय सीमा और परिवेश औपनिवेशिक काल से अतीत में पहली BC से जोड़ती है, जब नागवंशी मूलवासी भारतीय और विदेशी आर्यों के संक्रमण कालीन संघर्ष का दौर था। लम्बे समय तक साहित्य, समाज और सिनेमा से बहिष्कृत दलित, पिछड़े और आदिवासियों के इतिहास और जीवन कथा, अब केन्द्र में आने लगे हैं। सिनेमा अपने आप में एक प्रभावकारी विद्या है। यह ध्वनि और चित्र के संयोजन से जीवंत अभिव्यक्ति का माध्यम बनाता है।
"सिनेमा अभिव्यक्ति का सर्वाधिक प्रभावशाली एवं सशक्त माध्यम है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सिनेमा सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनीतिक आदि स्थितियों को आत्मसात करते हुए रचनात्मक माध्यम बना है। कहानी, उपन्यास, संस्मरण, नाटक, कविता, रिपोर्ताज, रेखाचित्र सभी को सिनेमा ने एक सशक्त अभिव्यक्ति दी है।"(www.shivajicollege.ac.in)
यह सही है कि साहित्य और सिनेमा के श्याह पक्ष को दलित उभार ने प्रभावित किया है। क्योंकि गैर-दलितों की दृष्टि दलित जीवन और संघर्ष के इतिहास को सही ढंग से प्रस्तुत नहीं किया है क्योंकि उसका अनुभव और सामंती परिवेश बाधा डालते हैं। पा. रंजीत, सिनेमा में नये प्रयोग और दलित जीवन के सामाजिक पक्षों को बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं। धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक पक्षों से देखने पर दलितों के ज्वलंत मुद्दों की समझ विकसित होती है। आज दलित के बगैर भारतीय राजनीति की कल्पना नहीं की जा सकती। इस बात को महसूस कर के ही पा. रंजीत ने "कबाली" और "काला" जैसी फिल्मों का निर्माण किया, जिसमें तमाम मुद्दों के साथ Social justice का मुद्दा केंद्र में रहा है।
तंगालन : एक मजबूत लीडर और योद्धा
'तंगालन' का मतलब होता है, लीडर, नेता, अगुवा या रास्ता दिखाने वाला जो सभी को साथ लेकर चले और आपदा आने पर वह सब से पहले उसका मुकाबला करने को तैयार रहे। अपने लोगों के सुख-दुख, तीज-त्यौहार में बराबर शरीक रहे और अपने लोगों को हर तरह की विपदा से बचाये। इस तरह के चरित्र को लेकर पा. रंजीत ने चियान बिक्रम के रूप में तंगालन मुनि का निर्माण किया है। इसमें पा. रंजीत ने दलित जीवन के अतीत को भी खगाला है। बहुत कुछ बाबा साहब डा. अम्बेडकर की दृष्टि से प्रभावित रंजीत व्यक्तिगत जीवन में भी सामाजिक समरसता और समावेशी संस्कृति के विकास के लोकतांत्रिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों के निर्माण में सक्रिय हैं। जो काम 100 साल में हिन्दी सिनेमा ने नहीं किया, उसकी शुरूआत तमिल से हो रही है। यह जीवन दृष्टि और राष्ट्रीय चेतना दलितों की तरफ से ही आ सकती थी, और आ रही है। पा. रंजीत दलित समाज से हैं और कन्वर्टेट ईसाई हैं। चियान भी ईसाई पिता और हिन्दू माता की संतान हैं। यह जोड़ी सिनेमा के इतिहास में तंगालन के रूप में विस्फोट कर दी है।
तंगालन : एक मजबूत लीडर और योद्धा
'तंगालन' का मतलब होता है, लीडर, नेता, अगुवा या रास्ता दिखाने वाला जो सभी को साथ लेकर चले और आपदा आने पर वह सब से पहले उसका मुकाबला करने को तैयार रहे। अपने लोगों के सुख-दुख, तीज-त्यौहार में बराबर शरीक रहे और अपने लोगों को हर तरह की विपदा से बचाये। इस तरह के चरित्र को लेकर पा. रंजीत ने चियान बिक्रम के रूप में तंगालन मुनि का निर्माण किया है। इसमें पा. रंजीत ने दलित जीवन के अतीत को भी खगाला है। बहुत कुछ बाबा साहब डा. अम्बेडकर की दृष्टि से प्रभावित रंजीत व्यक्तिगत जीवन में भी सामाजिक समरसता और समावेशी संस्कृति के विकास के लोकतांत्रिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों के निर्माण में सक्रिय हैं। जो काम 100 साल में हिन्दी सिनेमा ने नहीं किया, उसकी शुरूआत तमिल से हो रही है। यह जीवन दृष्टि और राष्ट्रीय चेतना दलितों की तरफ से ही आ सकती थी, और आ रही है। पा. रंजीत दलित समाज से हैं और कन्वर्टेट ईसाई हैं। चियान भी ईसाई पिता और हिन्दू माता की संतान हैं। यह जोड़ी सिनेमा के इतिहास में तंगालन के रूप में विस्फोट कर दी है।
फिल्म का पहला दृश्य 1850 ईस्वी से कलेक्टर आफिस बेंगलुरु से शुरू होता है। जहां अंग्रेज अफसर टीपू सुल्तान के द्वारा खोजी गई मैसूर रियासत में सोने की खान को दूबरा खोजने की योजना बनाते हैं। जिसमें स्थानीय राजा की मदद मांगी जाती है। लेकिन डरवानी और मौत की खाई के रूप में प्रसिद्ध "कोलार गोल्ड फिल्ड" में राजा जाने से इंकार कर देते हैं। उसके बाद दूसरा दृश्य वेप्पुर गांव, उत्तरी एरकोट का आता है। जहां तंगालन का परिवार अपने समुदाय के साथ निवासित है। सब मिरासीदार(जमीदार) के खेत में काम करने के लिए जा रहे होते हैं। क्योंकि तंगालन को छोड़कर किसी के पास एक भी जमीन नहीं होती है। इसलिए वे बंधुआ मजदूरों की हैसियत से काम पर जा रहे होते हैं। तंगालन भी अपने खेत में परिवार के साथ धान की फसल काट रहा होता है। जमीदार के खेतों में उसके जाति बंधुओं के लोग भी काम कर रहे होते हैं, स्त्री पुरुष सब बराबर श्रम कर रहे होते हैं। यह बिंम्ब और जीवन सौंदर्य दलित समाज की समानता सूचक तत्व है। जहां स्त्री पुरुष में किसी प्रकार की असमानता नहीं है। यहां पितृसत्तात्मक क्रूरता भी नहीं है। सब मस्त हैं और गीत गा रहे हैं, श्रम कर रहे हैं ताकि दुख हल्का हो सके। गीत में भविष्य की कामना है, सुखमय जीवन की। इसी बीच में जमीदार अपने लाव लस्कर के साथ आ रहा होता है तो तंगालन की बेटी पूछती है,
(गीत के बीच में) -बाबा जमीनदार के पास इतनी जमीन है, हम लोगों के पास इतनी कम क्यूँ?
पत्नी - मेरी बच्ची, ये जो सारी जमीन है न, कभी तेरे बाप पूरखों की हुआ करती थी।
तंगालन- एह! , और नहीं तो क्या, देखो बेटा यह जो पूरी जमीन दिखाई दे रही है ना यह सब हमारी है। यह जमीनदारी, जागीरदारी, मुगलदारी यह सब अंग्रेज़ों की दी हुई ताकत है, सर पर बिठा कर रखा है। उसी का फायदा उठाकर हमसे हमारी ज़मीनें छिन लिये। जो मेहनत करता है जमीन उसकी होती है, जो मेहनत ना करे जमीन उसकी कैसे हो गयी? जमीदार चीढ़ जाता है।
कहानी बीच में फ्लैश बैक में तंगालन की दंत कहानी और स्वप्न द्वारा चली जाती है। ऐसे ही, खेत से खलिहान में बच्चों के आग्रह पर हाथी के पहाड़ वाली कथा सुनाता है, जिसमें उसके पुरखे पेन्नानदी में सोना निकाल रहे थे। उसी समय उस देश का राजा युद्धोपरांत वापस लौट रहा था। दोनों के बीच संघर्ष होता है। सोना खोजने में असफल होने पर राजा तंगालन के पुरखा से जमीन के बदले सोना खोजने का सौदा करता है। क्योंकि जिस जमीन पर सोना होता है, वहां नाग जाति के आदिवासी रहते हैं जो बेहद खुखार हैं और सांपो को नियंत्रित करते हैं, जिसमें राजा के सैनिक डर के जाने से इंकार करते हैं लेकिन तंगालन के पुरखों पर सांपों के काटने का कोई असर नहीं होता है क्योंकि वो भी कभी नाग जाति से संबंधित थे। उन लोगों के पास एक भभूत होता है, जिसके छिड़काव से सांप भाग जाते हैं। राजा के कहने पर तंगालन का पुरखा आदिवासी नाग कन्या आरती और उसके साथियों से युद्ध करता है। और आरती का पेट खंजर से फाड़ देता है। उसके खून के मिश्रण से, वहां की मिट्टी और कंकर सोना बन जाते हैं। राजा खुश होता है और अपना खंजर उसे देता है। जो विरासत में तंगालन के पास मौजूद रहता है। अफसोस करता है एक भी सोना वह नहीं ला पाया! तभी दृश्य का दूसरा पड़ाव शुरू होता है।
मिरासीदार के क्रोध की आग में तंगालन का सुखमय और स्वतंत्र जीवन तब स्वाहा हो जाता है, जब फसल की निराई के समय मिरासीदार के लोगों द्वारा आग लगा दी जाती है। सब कुछ खत्म हो जाता है। लगान न दे पाने के ऐवज में मिरासीदार उसकी जमीन हड़प लेता है और व्याज की अदायगी के लिए तंगालन और उसके परिवार के सात सदस्यों को ' पन्नैयल प्रणाली' का हिस्सा बनने पर मजबूर कर दिये जाते हैं। पन्नैयल, बंधुआ मजदूरी की एक प्रथा है, जो सिर्फ नाम में ही गुलामी से भिन्न है। जब वह विरोध करता है तो जमीदर के लठैतों द्वारा खूब पिटाई होती है।
"इस जमीन की कीमत कुछ भी नहीं है। मगर एक ऐसी दुनिया में, जिसमें उसका जिंदा बना रहना ही सामाजिक व्यवस्था पर आक्षेप हो, जमीन का वह छोटा सा टुकड़ा तंगालन की आजादी का क्रांतिकारी उद्घोष बन जाता है।" (forwardpress.in)
सोना और जमीन का प्रतीक गढ़ के पा. रंजीत ने फिल्म के माध्यम से दलितों के आर्थिक पहलू पर दृष्टिपात किया है। एक दिन क्लेमन अंग्रेजी अफसर सोना खोजने के लिए मजदूर खोजता है। तंगालन अपनी आर्थिक बदहाली और बंधुआ गुलामी से मुक्ति के लिए यह रास्ता चुन लेता है। लोगों में डर है कि जो सोने की खोज में जाता है, वापस नहीं आता है। भूत-पिशाच, जादू-टोना और चमत्कार के द्वारा फिल्म में रोचकता और मनोरंजन योग्य दृश्य का निर्माण किया गया है। सोने की खोज में क्लेमन के बेटे बिलियम और तंगालन के बेटे अशोकन में दोस्ती हो जाती है। जहाँ अशोक को गांव के लोग छूने से कतराते थे वहीं बिलियम के साथ अशोक गलबहियाँ करके सोने की खोज और शिकार करते हैं।
एक कुएं में खोज के दरम्यान बुद्ध का कटा सर और तंगालन को आरती की छवि दिखती है। हाथी पहाड़ के पास ब्लैक पैंथर से सोना खोजी टोली का मुठभेड़ होता है और अंग्रेज़ अफसर क्लेमन की जान तंगालन बचाता है। वहीं बुद्ध का धड़ मिलता है और अशोक उस सिर और धड़ को जोड़ देता है। जहाँ फिर से आरती के आधुनिक स्वरूप आदिवासी नागों के साथ मुठभेड़ होता है। एक रात बिजली गिरने से बिलियम की मौत हो जाती है। फिर भी क्लेमन सोना खोजने की हठ से पीछे नहीं हटता है। अपने बेटे का कपड़ा और बंदूक तंगालन को देता है और कहता है - तुम बहादुर हो, हमें तुम पर गर्व है। तुम अपने लोगों के लिए कुछ कर सकते हो। तंगालन को खुदाई के लिए और मजदूर लाने के लिए भेजता है। घोड़े पर सवार, कंधे में बंदूक देखकर गांव के लोग और मिरासीदार चौंक जाते हैं। यह दृश्य हमें हालीवुड की फिल्म "जैंगो" से प्रेरित लगती है जब अश्वेत गुलाम आजाद होने पर इसी पोशाक में जाता है।
तंगालन बंदूक तानता मिरासीदार को पैसा देता है और जमीन के कागजात वापस लेता है। अपने समुदाय के लोगों के साथ खुशियां मनाता है। लोगों को बंधुआ गुलामी से मुक्ति के लिए प्रेरित करता है, संवाद देंखे -
गांव का एक आदमी - सब को ले जाकर वहां मरवाने आया है?
"तंगालन - तो अब कौन सा अच्छा जी रहे हो? जैसे बैल खेतों में मेहनत करते हैं वैसे हम भी मेहनत करते रहे हैं? कच्चा चावल, मोटा चावल, उकडा चावल, काला चावल, लम्बा चावल कितने चावल की फसल उगाई है! उसमें से मुट्ठी भर चावल अपने घर ले जा सकते हो क्या?
ये जमीन अपनी ही है ना, लेकिन किसी एक पास मुट्ठीभर जमीन है क्या? अगर होती भी है तो क्यूँ छिन लेते हैं? मेहनत हम करेंगे, जमीन भी हमारी है लेकिन मुनाफा हमें नहीं देंगे! कल जो हमारा बच्चा पैदा होगा गुलाम बनकर ही रहेगा। तो फिर ऐसी जिंदगी जीने से क्या फायदा है?
गांव का आदमी - तो फिर वहां जाने से जिंदगी बदलेगा?
तंगालन- बदलेगा, देखना सब बदलेगा आज के दिन ये जमीन मेरे हाथ में है। मैंने कर के दिखाया न।
(उसकी पत्नी कहती है - तू ही कहता था उधर भूत - पिशाच होते हैं तूझे डर नहीं लगता क्या?
तब वह कहता है- रात में खेत की रक्षा के लिए नहीं जाती है क्या? तब तूझे भूत-पिशाच डर नहीं लगता क्या? प्रेतात्मा से डर के घर के अंदर छुप के बैठती है क्या?
मौत से डरेंगे तो जी नहीं पाएंगे!
सुनो, मैं ऐसा नहीं कह रहा हूँ कि वहां जाकर राजा की तरह जियेंगे, पर हमसे जानवरों जैसा बर्ताव करने वाले के पैरों के नीचे दबे रहने से अच्छा है, हम उस हकीकत के लिए अपना जान दे दें। अंग्रेज साहब ने वादा किया है, पैसे देंगे, कपड़ा देंगे और बच्चों पढ़ने के लिए स्कूल बनवाएंगे।"
जब लोगों को लेकर तंगालन वहां जाता है तो परिदृश्य बदला हुआ नजर आता है। अंग्रेजी अफसर क्लेमन का कारिन्दा लठैतों के साथ तंगालन के लोगों के साथ गुलामों जैसा बर्ताव करते हैं। कोड़ा मारकर गोल्ड माइन की खुदाई कराते हैं। उसका बेटा अशोक और एक नागा व्यक्ति को बांध गया होता है। लोग कहते हैं, तेरे जान के बाद साहब के बंदूक धारी सिपाही आए और जंगल में नागा आदिवासियों के घरों में आग लगा दी और सब लोगों को गोली मार दी। यह सच है कि आज भी और औपनिवेशिक काल में भी ट्राइबल लोगों को जंगल और पहाड़ से खदेड़ कर ही आधुनिकीकरण का ताज सजा है। जल, जंगल और जमीन के रखवाले तथा परिस्थितिकी तंत्र के संतुलन के लिए आदिवासियों ने प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित किया है। पा. रंजीत ने इस फिल्म के माध्यम से आदिवासी विस्थापन की मूल संरचना के पार झांकने की कोशिश किया है।
क्लेमन के कहने पर तंगालन अपने लोगों को काम पर लगाता है।
अशिक्षा और अंग्रेज़ी भाषा की अज्ञानता का फायदा उठाने का काम दुभाषिया सवर्ण करते थे। ऐसा इस फिल्म में दिखाया गया है। हाड़ तोड़ मेहनत और भूख से लोगों में विभ्रम होने लगता है। सांपों के आतंक लोगों का मनोबल तोड़ डालता है। ऐसे में विद्रोह भी होता है। क्लेमन अब क्रूर हो जाता है। उसका कहना है कि सोने पर केवल उसका अधिकार है। भूखे प्यासे लोगों को तंगालन भैंसें का शिकार कर के पेट भरता है। उसके बाद गुफा के पहाड़ को तोड़ डालते हैं, सब। तब फिर आरती की छवि तंगालन को दिखती है और नाग कन्या अपने साथियों के साथ क्लेमन और तंगालन पर वार करती है। साउंड वेब की ध्वनि के साथ नाग कन्या क्लेमन पर वार करती है। क्लेमन आरती को मार देता है लेकिन आरन का भूत तंगालन को उसके अतीत का बोध कराता है और वह क्लेमन को मार देता है। तब आरती कहती आरन तुमने अपने लोगों को धोखा दिया है।
एक कुएं में खोज के दरम्यान बुद्ध का कटा सर और तंगालन को आरती की छवि दिखती है। हाथी पहाड़ के पास ब्लैक पैंथर से सोना खोजी टोली का मुठभेड़ होता है और अंग्रेज़ अफसर क्लेमन की जान तंगालन बचाता है। वहीं बुद्ध का धड़ मिलता है और अशोक उस सिर और धड़ को जोड़ देता है। जहाँ फिर से आरती के आधुनिक स्वरूप आदिवासी नागों के साथ मुठभेड़ होता है। एक रात बिजली गिरने से बिलियम की मौत हो जाती है। फिर भी क्लेमन सोना खोजने की हठ से पीछे नहीं हटता है। अपने बेटे का कपड़ा और बंदूक तंगालन को देता है और कहता है - तुम बहादुर हो, हमें तुम पर गर्व है। तुम अपने लोगों के लिए कुछ कर सकते हो। तंगालन को खुदाई के लिए और मजदूर लाने के लिए भेजता है। घोड़े पर सवार, कंधे में बंदूक देखकर गांव के लोग और मिरासीदार चौंक जाते हैं। यह दृश्य हमें हालीवुड की फिल्म "जैंगो" से प्रेरित लगती है जब अश्वेत गुलाम आजाद होने पर इसी पोशाक में जाता है।
तंगालन बंदूक तानता मिरासीदार को पैसा देता है और जमीन के कागजात वापस लेता है। अपने समुदाय के लोगों के साथ खुशियां मनाता है। लोगों को बंधुआ गुलामी से मुक्ति के लिए प्रेरित करता है, संवाद देंखे -
गांव का एक आदमी - सब को ले जाकर वहां मरवाने आया है?
"तंगालन - तो अब कौन सा अच्छा जी रहे हो? जैसे बैल खेतों में मेहनत करते हैं वैसे हम भी मेहनत करते रहे हैं? कच्चा चावल, मोटा चावल, उकडा चावल, काला चावल, लम्बा चावल कितने चावल की फसल उगाई है! उसमें से मुट्ठी भर चावल अपने घर ले जा सकते हो क्या?
ये जमीन अपनी ही है ना, लेकिन किसी एक पास मुट्ठीभर जमीन है क्या? अगर होती भी है तो क्यूँ छिन लेते हैं? मेहनत हम करेंगे, जमीन भी हमारी है लेकिन मुनाफा हमें नहीं देंगे! कल जो हमारा बच्चा पैदा होगा गुलाम बनकर ही रहेगा। तो फिर ऐसी जिंदगी जीने से क्या फायदा है?
गांव का आदमी - तो फिर वहां जाने से जिंदगी बदलेगा?
तंगालन- बदलेगा, देखना सब बदलेगा आज के दिन ये जमीन मेरे हाथ में है। मैंने कर के दिखाया न।
(उसकी पत्नी कहती है - तू ही कहता था उधर भूत - पिशाच होते हैं तूझे डर नहीं लगता क्या?
तब वह कहता है- रात में खेत की रक्षा के लिए नहीं जाती है क्या? तब तूझे भूत-पिशाच डर नहीं लगता क्या? प्रेतात्मा से डर के घर के अंदर छुप के बैठती है क्या?
मौत से डरेंगे तो जी नहीं पाएंगे!
सुनो, मैं ऐसा नहीं कह रहा हूँ कि वहां जाकर राजा की तरह जियेंगे, पर हमसे जानवरों जैसा बर्ताव करने वाले के पैरों के नीचे दबे रहने से अच्छा है, हम उस हकीकत के लिए अपना जान दे दें। अंग्रेज साहब ने वादा किया है, पैसे देंगे, कपड़ा देंगे और बच्चों पढ़ने के लिए स्कूल बनवाएंगे।"
जब लोगों को लेकर तंगालन वहां जाता है तो परिदृश्य बदला हुआ नजर आता है। अंग्रेजी अफसर क्लेमन का कारिन्दा लठैतों के साथ तंगालन के लोगों के साथ गुलामों जैसा बर्ताव करते हैं। कोड़ा मारकर गोल्ड माइन की खुदाई कराते हैं। उसका बेटा अशोक और एक नागा व्यक्ति को बांध गया होता है। लोग कहते हैं, तेरे जान के बाद साहब के बंदूक धारी सिपाही आए और जंगल में नागा आदिवासियों के घरों में आग लगा दी और सब लोगों को गोली मार दी। यह सच है कि आज भी और औपनिवेशिक काल में भी ट्राइबल लोगों को जंगल और पहाड़ से खदेड़ कर ही आधुनिकीकरण का ताज सजा है। जल, जंगल और जमीन के रखवाले तथा परिस्थितिकी तंत्र के संतुलन के लिए आदिवासियों ने प्रकृति के साथ तादात्म्य स्थापित किया है। पा. रंजीत ने इस फिल्म के माध्यम से आदिवासी विस्थापन की मूल संरचना के पार झांकने की कोशिश किया है।
क्लेमन के कहने पर तंगालन अपने लोगों को काम पर लगाता है।
अशिक्षा और अंग्रेज़ी भाषा की अज्ञानता का फायदा उठाने का काम दुभाषिया सवर्ण करते थे। ऐसा इस फिल्म में दिखाया गया है। हाड़ तोड़ मेहनत और भूख से लोगों में विभ्रम होने लगता है। सांपों के आतंक लोगों का मनोबल तोड़ डालता है। ऐसे में विद्रोह भी होता है। क्लेमन अब क्रूर हो जाता है। उसका कहना है कि सोने पर केवल उसका अधिकार है। भूखे प्यासे लोगों को तंगालन भैंसें का शिकार कर के पेट भरता है। उसके बाद गुफा के पहाड़ को तोड़ डालते हैं, सब। तब फिर आरती की छवि तंगालन को दिखती है और नाग कन्या अपने साथियों के साथ क्लेमन और तंगालन पर वार करती है। साउंड वेब की ध्वनि के साथ नाग कन्या क्लेमन पर वार करती है। क्लेमन आरती को मार देता है लेकिन आरन का भूत तंगालन को उसके अतीत का बोध कराता है और वह क्लेमन को मार देता है। तब आरती कहती आरन तुमने अपने लोगों को धोखा दिया है।
पोस्ट चित्र, तंगालन फिल्म का |
तब आरन कहता है - ये भूल गये कि सदियों पहले हम भी नागा जाति के थे। मगर वर्ण जाति व्यवस्था के कारण हम नीचे गिरा दिये गये, हमने अपना देश खोया, अपनी जमीन खोई। यहां तक कि गांव से बाहर कर दिया गया हमें।...इस जंगल को बचाना हमारा फर्ज है, और उसी तरह हमारे लोगों की भी उन्नति होना चाहिए। इस जरूरत वादी दुनिया में जिंदा रहना है तो हमारे पास यही एक रास्ता है।
इसके बाद सोने के खान से एक टुकड़ा लेकर तंगालन वापस आता है और फिल्म समाप्त हो जाती है।
फिल्म के ऐतिहासिक पक्षों पर बात करें तो नागवंश जनजाति कबिला था। जिसका हिन्दुओं के ऋग्वेद और आधुनिक भारतीय इतिहास में भी जिक्र आता है। छत्तीसगढ़, छोटा नागपुर और संथाल परगना में नाग जातियों का निवास था।
'बयं रक्षाम:' उपन्यास में आचार्य चतुरसेन शास्त्री मथुरा क्षेत्र और कृष्ण के भाई बलिराम से शेषनाग का संबंध जोड़ते हैं। बनारस में नागवंश के होने का स्रोत भी देते हैं।
डी. डी. कोसंबी "प्राचीन भारत के सांस्कृतिक इतिहास में" नाग जातियों के बुद्ध द्वारा दीक्षित करने की बात करते हैं। नवरत्न गढ़ में नागराजाओं के महल खंडर के रूप में आज भी विद्यमान हैं। नाग वंश मातृसत्तात्म रही है। यह उक्त फिल्म से भी परिलक्षित होता है। जब कभी लड़ाई होती है तो लीड एक नाग कन्या ही करती है। बाबा साहब डा. अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक the untouchable में नागवंश के बारे में विस्तृत जानकारी देते हैं। स्रोत के रूप में वेद और पुराण की सहायता लेते हैं। मेरे अध्ययन में एक बात कामन आई है कि नाग कन्या सुन्दर होती है और आर्य कबिलों से उनका वैवाहिक संबंध होता है। कभी ऐसा नहीं हुआ है कि एक नाग पुरुष से किसी नाग कन्या का विवाह हुआ हो। तब मुझे डा. धर्मवीर के निष्कर्ष के एक बात की पुष्टि होती है कि - दलितों की मातृसता ब्राह्मणों के पितृसता से हारी है। इस दृष्टिकोण से नागों पर अलग से लिख रहा हूँ।
संगीत और सिनेमेटोग्राफी - इस फिल्म के संगीत कहानी के गहन यथार्थ को व्यंजित करते हैं। जहां दलित के जीवन दर्शन ही गीत के माध्यम से व्यक्त होते हैं। अखिरी गीत, मान है, अभिमान है तंगालन। फिल्म के वास्तविक अर्थ को खोल देता है। दृश्यांकन में पा. रंजीत के डाइरेक्शन ने जादू कर दिया है। औपनिवेशिक भारत के मैसूर रियासत के गांव के परिवेश को हूबहू पेश कर दिया है। लेकिन अतीत के दृश्य में थोड़ी कमजोरी नज़र आती है। अधिकांश लडाईयां नागा और आधुनिक अछूत के बीच ही लडी गई हैं। बुद्ध के बूत को ब्राह्मण पुरोहित द्वारा भूत कहना धार्मिक संघर्ष और घृणा को प्रदर्शित करता है। साफ-सुथरी रोमांस के दृश्य इसके गुणवत्ता में सुधार लाने में सफल हुए हैं।
फिल्म के ऐतिहासिक पक्षों पर बात करें तो नागवंश जनजाति कबिला था। जिसका हिन्दुओं के ऋग्वेद और आधुनिक भारतीय इतिहास में भी जिक्र आता है। छत्तीसगढ़, छोटा नागपुर और संथाल परगना में नाग जातियों का निवास था।
'बयं रक्षाम:' उपन्यास में आचार्य चतुरसेन शास्त्री मथुरा क्षेत्र और कृष्ण के भाई बलिराम से शेषनाग का संबंध जोड़ते हैं। बनारस में नागवंश के होने का स्रोत भी देते हैं।
डी. डी. कोसंबी "प्राचीन भारत के सांस्कृतिक इतिहास में" नाग जातियों के बुद्ध द्वारा दीक्षित करने की बात करते हैं। नवरत्न गढ़ में नागराजाओं के महल खंडर के रूप में आज भी विद्यमान हैं। नाग वंश मातृसत्तात्म रही है। यह उक्त फिल्म से भी परिलक्षित होता है। जब कभी लड़ाई होती है तो लीड एक नाग कन्या ही करती है। बाबा साहब डा. अम्बेडकर ने अपनी पुस्तक the untouchable में नागवंश के बारे में विस्तृत जानकारी देते हैं। स्रोत के रूप में वेद और पुराण की सहायता लेते हैं। मेरे अध्ययन में एक बात कामन आई है कि नाग कन्या सुन्दर होती है और आर्य कबिलों से उनका वैवाहिक संबंध होता है। कभी ऐसा नहीं हुआ है कि एक नाग पुरुष से किसी नाग कन्या का विवाह हुआ हो। तब मुझे डा. धर्मवीर के निष्कर्ष के एक बात की पुष्टि होती है कि - दलितों की मातृसता ब्राह्मणों के पितृसता से हारी है। इस दृष्टिकोण से नागों पर अलग से लिख रहा हूँ।
संगीत और सिनेमेटोग्राफी - इस फिल्म के संगीत कहानी के गहन यथार्थ को व्यंजित करते हैं। जहां दलित के जीवन दर्शन ही गीत के माध्यम से व्यक्त होते हैं। अखिरी गीत, मान है, अभिमान है तंगालन। फिल्म के वास्तविक अर्थ को खोल देता है। दृश्यांकन में पा. रंजीत के डाइरेक्शन ने जादू कर दिया है। औपनिवेशिक भारत के मैसूर रियासत के गांव के परिवेश को हूबहू पेश कर दिया है। लेकिन अतीत के दृश्य में थोड़ी कमजोरी नज़र आती है। अधिकांश लडाईयां नागा और आधुनिक अछूत के बीच ही लडी गई हैं। बुद्ध के बूत को ब्राह्मण पुरोहित द्वारा भूत कहना धार्मिक संघर्ष और घृणा को प्रदर्शित करता है। साफ-सुथरी रोमांस के दृश्य इसके गुणवत्ता में सुधार लाने में सफल हुए हैं।
एक टिप्पणी भेजें