जैसे राजकुमार राहुल ने आज के परिवेश में दलितों को लुभाने के लिए तरह-तरह के स्वप्न तैयार कर रहे हैं। यहां युक्तियुक्त व्यमोह नहीं है कि राजकुमार राहुल नाई को नाई और मोची को मोची के काम के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। बुद्ध ने भी कर्मवाद का प्रोत्साहन किया था। वैसे ही राहुल गांधी जाति और पेशा को बनाये रखना चाहते हैं, क्योंकि यही उनका सत्ता सिद्धांत है। राजनीतिक चिन्तन के लिए धर्म, दर्शन और इतिहास का होना बेहद जरूरी है। दलितों के पास यह हथियार होते हुए भी उससे अनभिज्ञता प्रदर्शित करते हैं। स्वामी अछूता नंद हरिहर और डा. धर्मवीर के ऐतिहासिक चिन्तन का स्वतंत्र इतिहास के नजरिए से अध्ययन करें। आपको द्विजों के उदारवाद, कट्टरवाद, अनीश्वरवाद, ईश्वरवाद, प्रगतिवाद इत्यादि के असली चेहरों के नकली मोहरें स्पष्ट नजर आएंगे। मैं लगातार लिखता रहा हूँ, राजनीतिक जमीन हो या धर्म, दर्शन, इतिहास की जमीन किराये के हथियारों से नहीं जीत पाएंगे। इसके लिए अपने नये और मजबूत हथियार विकसित करने होंगे! भीतर और बाहर के मुनाफिकों की पहचान करनी होगी और यह धर्मांतरण के बौद्ध सहित अन्य गैर-दलित धर्मों से तय नहीं होगी।
आज का समय, समाज और तकनीकी इतिहास बदलाव के नये आयाम तय करने के लिए अग्रसर है। लेकिन दलित अपनी गुलामी के जंजीर त्यागने से भी डरा हुआ है। जबकि उसकी चेतना और तेज का रोज कत्ल हो रहा है। ऐसे में मरने का क्या फायदा। दुनिया में आजादी और इंसाफ के लिए जेहाद हुए हैं।
आप अपने इतिहास को उठाकर देखो प्राचीन काल में आजीवकों ने अपने अस्तित्व के लिए महाशिलाकंटक का संग्राम किया है। अमेरिका के सिविल वार में काले दासों ने गोरों की खटिया खड़ी कर दी थी। लेकिन आज के भारत में क्या हो रहा है? राजनीतिक युद्ध में सब बिक रहे हैं, समाज से कट रहे हैं, सत्ता और कुर्सी के लिए द्विज पार्टियों से गोटियाँ सेट कर रहे हैं! आपको जिनके खिलाफ लड़ना था, जिनको परास्त कर के सत्ता और समाज का नियंत्रण अपने हाथों में लेना है, उन्हीं की अधीनता और नेतृत्व स्वीकार कर रहे हैं? धिक्कार है ऐसी चेतना और समझ पर। दुनिया में कोई भी एक उदाहरण बता सकते हैं, जिसने अपने नेतृत्व को बेचकर युद्ध का कोई मैदान फतह किया हो? तो फिर राजकुमार राहुल या बुद्ध दलित, पिछड़े और आदिवासियों के लिए किस खेत की मूली हैं?
16 सितंबर, 2024
संतोष कुमार
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