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संतोष कुमार |
एक दलित परिवार में पांच भाई रहते थे। उनके पूर्वज लम्बे समय से विदेशी सत्ताधारियों के गुलाम थे। संघर्ष की बदौलत वे अपना अस्तित्व बचा सके। आजादी के बाद उन्हें हक और अधिकार मिला। परिवार में पांचों भाई अपनी योग्यता के अनुरूप जिविकापार्जन करने लगे। इससे उनका परिवार धीरे-धीरे विकसित और मजबूत होने लगा। अब कभी ब्राह्मण, ठाकुर सामंत उनको आंख दिखाता तो मिलकर उसका सामना कर लेते थे। उनकी संगठन शक्ति और तार्किक चेतना ने स्वतंत्र धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक जमीन बनाने की चेष्टा करने लगी। परिवार में सभी भाई नेता, अफसर नहीं थे लेकिन सब मिलकर समृद्ध हो रहे थे, गरिमा प्राप्त कर रहे थे। अपनी शैक्षिक और दैहिक आत्मबल के साथ विकसित और परिवर्धित होने से, ब्राह्मण बर्चस्व कमजोर होने लगा था। मुखिया के चुनाव में ब्राह्मण को आरक्षण की वजह से हार का सामना करना पड़ रहा था। इससे ब्राह्मण कुनबे में खलबली मच गई। जब कभी वे इस परिवार पर आंख उठाते तो सभी भाई जम कर उसका सामना कर लेते थे। ऐसे में ब्राह्मण को उनसे पार पाना मुश्किल हो रहा था। उन्होंने एक युक्ति के तहत उनमें मतभेद का विष भरना चालू कर दिया। एक भाई बल शाली था, लेकिन शैक्षिक विकास उसका कम हुआ था, उसको अपने स्वतंत्र इतिहास की जानकारी नहीं थी। उसको तोड़ना चालू किया। उसे अपने साहित्य और पुराण के गपोड़ में उलझा दिया। 'वाल्मीकि' को उसका पुरखा घोषित कर दिया। और कान में जहर घोलने लगा कि तुम्हारे हिस्से के हक को तुम्हारे भाई खा रहे हैं, तुम्हें जायदाद में बटवारा कर लेना चाहिए! अब क्या था उस भाई ने बहकावे में आकर अन्य भाईयों को भी उकसा कर अपने पक्ष कर लिया। ब्राह्मण बोला अब पंचायत बुलाओ हम तुम्हारे पक्ष में फैसला कर देंगे! दलित परिवार के आपसी झगड़ो को निर्णय देने के लिए ब्राह्मणों के पूरे कुनबे ने मिलकर दो फाड़ कर दिया। और देखते ही देखते एक परिवार में दरार पड़ गया। दोनों एक दूसरे के दुश्मन, खून के प्यासे हो गए! ब्राह्मण मुस्कुराते हुए हांक लगा कर दोनों को फटकार लगता। धीरे-धीरे दोनों आपसी लड़ाई में कमजोर हो गये। अब सामंत ब्राह्मण उनको पीट कर बेगारी कराने लगा। जब वे हक अधिकार की बात करते तो उन्हें अयोग्य कह कर मजदूरी और बेगारी करने पर विवश कर देता। दोनों एक दूसरे को देखकर रोते और बिलखते! मगर संसाधन और शक्ति के अभाव में मन मसोस कर रह जाते!
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