संतोष कुमार
क. डाॅ. अम्बेडकर के प्रशासनिक विचार
बाबा साहब डा. भीमराव अम्बेडकर के मूल लेखन के अलावा किसी अन्य किताब से उनको समझना है तो वह है आजीवक दार्शनिक डा. धर्मवीर द्वारा लिखित 'डाॅ. अम्बेडकर के प्रशासनिक विचार' और 'डाॅक्टर अम्बेडकर की प्रभाववादी व्याख्या' उक्त दोंनो शोधपरक पुस्तक है, जिसमें डा. अम्बेडकर के राजनैतिक और सामाजिक दर्शन का बडी़ सटीक और तथ्यात्मक ढंग से विश्लेषण किया गया है। 'डा. अम्बेडकर के प्रशासनिक विचार' शोध ग्रंथ में दार्शनिक पद्धति, कानूनी पद्धति, ऐतिहासिक पद्धति, केस पद्धति, संस्थागत तथा संरचनात्मक पद्धति के साथ-साथ व्यवहारिक और समाजिक पद्धति का प्रयोग किया गया है।
जिसे पाश्चात्य शोध पद्धति तो नहीं कहा जा सकता लेकिन भारत में यह एक नई शोध पद्धति का पृष्ठाधार निर्मित करती है। इस पुस्तक को प्रत्येक दलित साहित्य के लेखकों और रिसर्च स्कॉलरों को पढ़ना चाहिए। फ्लैप कवर पर छपी डा. अम्बेडकर की यह बात सोचने पर विवश कर देती है, जो ये कहते हैं बौद्ध धर्मान्तरण से जातिप्रथा खत्म हो जाएगी। "कुछ लोग हैं यह तर्क पेश करते हैं कि हिन्दू समाज से जाति प्रथा को मिटाया जा सकता है। लेकिन मैं उनकी इस बात को स्वीकार नहीं करता। जो ऐसे विचार रखते हैं वे शायद यह सोचते हैं कि जातिप्रथा एक क्लब, नगरपालिका या देशीय परिषद की तरह कई कोई संस्था है। यह उनकी भारी गलती है। जातिप्रथा धर्म का मामला है और धर्म किसी भी संस्था से बड़ी चीज होती है यह संस्थागत हो सकता है लेकिन यह स्वयं वह नहीं है जिस संस्था से यह जुड़ा हुआ है।"
मेरे जानने में अब तक डा. अम्बेडकर पर ऐसा शोधपरक कार्य नहीं हुआ होगा, जैसा डा. धर्मवीर ने किया है -
इन्होंने अम्बेडकर और उनके समाज की समस्या की पृष्ठभूमि की पड़ताल की है, अल्पसंख्यक समुदाय के वास्तविक प्रतिनिधित्व के साथ लोकतंत्र और समाजवाद की अम्बेडकरी चिंतन की विवेचना किया है। लोक प्रशासन में जातिभेद से उपजी समस्या का समाधान भी प्रस्तुत किया है।
डा. अम्बेडकर "एक राजनेता के नाते भारत की दलित और पिछड़ी जातियों के लिए लोक सेवाओं में आरक्षण की मांग कारगर ढंग से रखी थी।"1 ताकि हर वर्ग से चुने हुए प्रशासक भारत को मजबूती प्रदान कर सकें। क्योंकि "वे (डा. अम्बेडकर) राजनीति के समान लोक सेवा को भी विभिन्न सामाजिक वर्गों की प्रतिनिधि लोक सेवा बनाना चाहते थे भारत का लोकतंत्र दलितों और पिछड़ों के हक में ज्यादा प्रभावी ढंग से काम कर सके।"2
भारतीय समाज में जाति का संबंध धर्म से जुड़ा मसला है। हिन्दू धर्म में बकायदा जाति विशेष लोगों को सारी सुविधाएं और अन्य जातियों को सुविधाओं से बंचित ही नहीं बल्कि अपनी सामाजिक जकड़बंदी से गुलाम बनाया गया है। इसीलिए "डा. अम्बेडकर के चिन्तन की सारी समस्याएं सामाजिक थीं। उन्होंने उन समस्याओं का समाधान भी सामाजिक ही दिया है। वर्ण व्यवस्था, जाति प्रथा और अस्पृश्यता की सामाजिक संस्थाओं में बखूबी देखा जा सकता है।"3
डा. अम्बेडकर द्वारा लिखित किताबें-
1.'दि अनटचेबल्स: हू वर दे एण्ड व्हाई दे बिकेम अनटचेबल्स?'
2. 'हू वर दि शूद्राज? हाऊ दे केम टु बी दि फोर्थ वर्णा इन दि इंडो-आर्यन सोसाइटी'
उक्त पुस्तकों में दर्ज विरोधाभासी बातों का विश्लेषण भी किया गया है।
ख.एक था डाॅक्टर एक था संत
यह पुस्तक अरुंधति राय द्वारा लिखित है। लेखिका के पिता ब्रह्म समाजी हिन्दू थे और माता सीरियन ईसाई, कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ये गैर-दलित हैं और द्विज स्त्री लेखिका भी कुछ हद तक। इन्होने उक्त किताब में अपने समय के दो धर्मों के दो महापुरुषों का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। लेखिका के मूल विचार का कहीं अता-पता नहीं चलता है। प्रत्येक पेज में उद्धरण की भरमार है। लेकिन उद्धरण रोचक और ज्ञानवर्धक हैं। किताब की शैली पता नहीं चलता है कि समीक्षा पुस्तक है या आलोचना या निबंध या इतिहास। कहीं-कहीं ऐसा लगता है लेखिका दलित साहित्य का इतिहास लिख रही हैं। एक कड़ी में कबीर, रैदास और स्वामी अछूता नंद को परिभाषित करते हुए डा. अम्बेडकर पर आती हैं। जिस से पता चलता है कि कुछ हद तक दलित इतिहास को प्रस्तुत कर सकी हैं। किताब के संपूर्ण अध्ययन से पता चलता है कि गांधी वास्तव में दलितों के दुश्मन थे। लेकिन डा. अम्बेडकर की पुस्तक 'एन्नीहिलेशन आफ कास्ट' और गांधी की पुस्तक 'हिन्द स्वराज' को केन्द्र में रखा गया है। लेखिका ने गांधी को दलितों का विरोधी और डा. अम्बेडकर को आदिवासियों का विरोधी सिद्ध किया है। कम्युनिस्ट नजरिए से दोनों की आलोचना भी है। लेकिन गांधी जी लेखिका की नजरों में महान जरूर हैं। देखें,
1. "डा. भीमराव रामजी आंबेडकर"4
2. "आंबेडकर"5
यह उक्त संबोधन डा. अम्बेडकर के लिए लेखिका ने लिखा है परंतु गांधी के पदार्पण का जिक्र देंखे,
1."दुनिया में सर्वाधिक प्रसिद्ध भारतीय, मोहनदास करमचन्द गांधी, आंबेडकर (डा. अम्बेडकर) से असहमत थे।"6
2. "लगातार चौड़ी होती ऐसी दरार के बीच जिस व्यक्ति ने क़दम रखा, वह आधुनिक विश्व का अब तक का ज्ञात सबसे तेज तर्रार राजनितिज्ञ था- मोहनदास करमचन्द गांधी।"7
3."वे (गांधी) पूरी दुनिया के दिमाग पर हावी थे।... वे (गांधी) सब की आंखों के ध्रुव तारा थे, राष्ट्र की आवाज थे।"8
और डा. अम्बेडकर अछूतों यानी दलितों के नेता थे।
यही लेखिका के सूक्ष्म उत्स हैं। जो मोटी परत वाले दलितों के दिमाग में नहीं चढ़ती है। लेखिका यहीं तक नहीं रूकी वे डा. अम्बेडकर को राज नेता भी नहीं मानतीं। जहां डा. धर्मवीर दलित चिन्तक होने के नाते अपने महापुरुष के मूल्यांकन में लिखते हैं - "एक राजनेता के नाते भारत की दलित और पिछड़ी जातियों के लिए लोक सेवाओं में आरक्षण की मांग कारगर ढंग से रखी थी।"9 तो वहीं अरुंधति राय लिखती हैं - "आखिर वे (गांधी) एक राजनेता थे, जो आंबेडकर नहीं थे।"10 लेखिका गांधी के मोह में लिखती हैं - "इसमें कोई शक नहीं कि गांधी एक असाधारण और मनमोहक व्यक्ति थे।"11
गांधी भारतीय द्विज यानी हिन्दुओं समेत धर्मांतरण किये हुए द्विजों के हीरो हो सकते हैं लेकिन दलित के लिए एक भयावह सपना थे। जिसे दलित भुलकर भी याद नहीं करना चाहते। द्विज चाहे जितना दलित हितैषी बने अंततः वह अपनी द्विज परंपरा में प्रवाहित हो ही जाता है।
विभिन्न धर्मों में धर्मांतरित दलितों की सूचना, दलित ईसाईयों के आरक्षण पर सवाल उठाती लेखिका केरल के 'परया' यानी दलित ईसाईयों की अलग चर्च का जिक्र करती हैं। नवबौद्धों को थोड़ा ध्यान से पढ़ना चाहिए कि धर्मांतरण और इंटरकास्ट मैरिज से जाति नहीं टूटती। भारत में जाति एक अनिवार्य सत्य और पहचान भी है।
ग. यदि बाबा साहब नहीं होते?
डाॅ. भदन्त आनंद कौसल्यायन बाबा साहब डाॅ भीमराव अम्बेडकर से भी पहले धर्मान्तरित गैर-दलित यानी द्विज बौद्ध भिक्षु थे। इन्होंने बाबा साहब के साथ कुछ वक्त बिताया था। मतलब राहुल सांकृत्यायन और बाबा साहब से ये बहुत प्रभावित थे। 1968 में इन्होंने यदि बाबा साहब नहीं होते?' पुस्तक लिखी थी। एक तरह से यह पुस्तक जीवनीपरक शैली में है। मेरे पास जो उपलब्ध है वह रजनीश अंबेडकर और आकांक्षा कुरिल की शादी में वितरित दूसरा 2015 का संस्करण है। इस पुस्तक से पता चलता है कि बाबा साहब के पिता और दादा अंग्रेजी सरकार में 'हवलदार' और 'सूबेदार' थे। यानी दो पीढ़ी नौकरी में। फिर आर्थिक अभाव की दयनीयता समझ में इसलिए नहीं आती की जिन के पूर्वज मजदूरी पर आश्रित थे वे भी संघर्ष किये। बात अछूतपन की थी जो बाबा साहब को गहरे तक बेधित किया। भंते आनन्द ले लिखा है - "जो 'महार' फौज में नौकरी करते थे, उनमें दो बुरी आदतों में से एक न एक घर कर जाती थी, या तो शराब पीने की आदत, या 'ब्रह्मज्ञान' के पीछे हाथ धोकर पड़ जाने की आदत"12 फौज की नौकरी में शराब आम बात है, इस को सरकार खुद ही उपलब्ध कराती है। दूसरा व्यसन क्या है - ब्रह्म ज्ञान का आखिर ये है क्या जो महारों को नुकसान पहुंचा रही है? देंखे,
"अपने पिता मालोजी राव की तरह रामजी भी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। पहले रामानन्द को मानने वाले थे। बाद में सेना से छुट्टी मिल जाने पर कबीर-पन्थी बन गये।"13
लेखक वैष्णव संप्रदाय के आवरण को भेद नहीं पाये हैं। डा. धर्मवीर कबीर पर किये अपने शोध की श्रृखंला में 'रामानंद' अलौकिक अवतार का पर्दाफाश कर चुके हैं। ऐसे में डा. अम्बेडकर के पूर्वजों की धार्मिक प्रवृत्ति कबीर की परंपरा का होने के नाते 'आजीवक धर्म' की हो जाती है। दिक्कत यह है कि कबीर के साथ बेमतलब का रामानंदी रिफरेंस चलन पकड़ गया था। जिसे अलग किया जा चुका है। इसी तरह आधुनिक भारत में डा. अम्बेडकर के धर्मांतरण के कारण बुद्ध का रेफरेंस आजीवक साहित्य में चल रहा है। उसे भी जल्द ही अलग कर देना है।
बुद्धिज्म की नज़र से लिखी ,ये पुस्तक महत्वपूर्ण हैं पाठकों को अवश्य पढ़नी चाहिए।
संदर्भ :-
1. डा. धर्मवीर, डॉ. अम्बेडकर के प्रशासनिक विचार, वाणी प्रकाशन, 21-ए, दरियागंज, नयी दिल्ली - 110002, आवृत्ति संस्करण :2015, पृष्ठ 12
2. वही, पृष्ठ 13
3.वही, पृष्ठ 20
4. अरुंधति राय, एक था डाॅक्टर एक था संत, (अनुवादक- अनिल यादव 'जयहिंद', रतन लाल) राजकमल प्रकाशन प्रा. लि. 1-बी, नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज नई दिल्ली - 110002, दूसरा संस्करण 25 अप्रैल, 2019, पृष्ठ 21
5. वही, पृष्ठ 54
6. वही, पृष्ठ 13
7.वही
8. वही, पृष्ठ 60
9. डा. धर्मवीर, डॉ. अम्बेडकर के प्रशासनिक विचार, वाणी प्रकाशन, 21-ए, दरियागंज, नयी दिल्ली - 110002, आवृत्ति संस्करण :2015, पृष्ठ 12
10. अरुंधति राय, एक था डाॅक्टर एक था संत, (अनुवादक- अनिल यादव 'जयहिंद', रतन लाल) राजकमल प्रकाशन प्रा. लि. 1-बी, नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज नई दिल्ली - 110002, दूसरा संस्करण 25 अप्रैल, 2019, पृष्ठ 128
11. वही, पृष्ठ 38
12. डाॅ. भदन्त आनंद कौशल्यायन, यदि बाबा साहब न होते?, सिद्धार्थ बुक्स, 1/4446, गली नं. 4, मंडोली रोड, शाहदरा, दिल्ली - 32, द्वितीय संस्करण 2015, पृष्ठ 7
13. वही
दिनांक 17/04/2020
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