संतोष कुमार// भारतीय संस्कृति समावेशी रही है। जिसमें देशी-विदेशी तत्वों की भरमार है। ऐसी मिश्रित समाज व्यवस्था की एक अलग ही दुनिया है। कुछ कड़वी है तो कुछ खट्टी है, लेकिन कैपटलिज्म और फ्यूडलिज्म ने इस देश में की अधिकांश जनता पर अपना प्रभुत्व जमाये रखा है। आज के वर्तमान परिवेश में लुप्तप्राय सांमतवाद की जगह धार्मिक कल्ट ले चुके हैं। इनके पास जनता की इतनी भीड़ है कि वे जिस तरह चाहें, उसका उपयोग कर सकते हैं।
देव पटेल निर्देशित मूवी "मंकी मैन" नेटफिल्किस पर रिलीज है। हिन्दू पौराणिक हनुमान की थीम आधारित यह फिल्म स्लम एरिया की जमीनी दास्तान बयां करती है। ब्रिटिश अभिनेता देव पटेल 'स्लमडॉग मिलेनियर' से ख्याति हासिल किये थे। वे अपनी सिनेमैटिक प्रेरणा के बारे में कहते हैं कि - मैं ब्रूस ली, अर्नोल्ड श्वार्ज़नेगर, जिम कैरी और जैकी चैन को देखते हुए बड़ा हुआ हूं। मंकी मैन में इन सबकी झलक दिखेगी। यह कॉकटेल ही है जो मुझे बनाता है।' यथार्थवादी सिनेमा के बारे में वे आगे कहते हैं -' स्लमडॉग मिलियनेयर जैसी फिल्में करने जा रहा हूं और इस तरह की सभी फिल्में कर रहा हूं। मुझे वास्तव में एहसास हुआ कि पहली फिल्म जिसका मैं निर्देशन करने जा रहा हूं, मैं संस्कृति को दोगुना नहीं, बल्कि तीन गुना कम करने वाला हूं।' जिस हिन्दू संस्कृति पर कुछ गर्व करते हैं, उसकी नग्न सच्चाई के अनावरण से मोहभंग तो हो ही जाता है। इसीलिए उसकी अल्पता की सच्चाई बयां करते हैं। भारतीय मूल के लोग जहाँ गये उसी देश की कल्चर को एडाप्ट कर लिया। उन्हीं में से देव के माता पिता थे। यूरोपीय कल्चर के आगे भारतीय संस्कृति देव पटेल को शर्मसार करती थी। इसलिये एक साक्षात्कार में वे कहते हैं - 'एक समय था जब मुझे अपनी विरासत के भारतीय हिस्से पर शर्म आती थी। जब आप ग्रेटर लंदन के स्कूल में होते हैं, तो यह जरा भी कूल नहीं होता है। मैं कोशिश कर रहा हूं कि मैं उस हिस्से को न दिखा सकूं।' (Jagaran. Com, 10 April, 2024)
मंकी मैंन में कहानी की शुरुआत एक फाइटिंग क्लब से होती है। जिसमें देव पटेल कुछ तलाश करते नज़र आते हैं। पार्श्व स्टोरी में फिल्म की कहानी के अर्थ खुलते हैं। मुंबई की झोपड़ पट्टी पर हिन्दू धर्म के कट्टरवादी धार्मिक नेता बाला सिंह की नज़र होती है। पूरे गाँव को खाली कराने के राणा सिंह नामक पुलिस अफसर की सहायता बाला सिंह लेता है। गांव के लोग जमीन खाली करने से इंकार कर देते हैं। उनका समवेत स्वर होता है कि - यह जमीन हमारी है, इसमें हमारे पूर्वजों का खून है इसलिए इसे हम खाली नहीं कर सकते।' रात के अंधेरे में पुलिस और बाला के गुड्डें गांव पर हमला कर देते हैं। बलात्कार, बर्बरता के साथ हत्या और आगजनी के द्वारा पूरे गाँव को साफ कर दिया जाता है। नायक की मां के साथ पुलिसकर्मी राणा सिंह बलात्कार करने के उपरांत जिंदा जला देता है। बालक देव पटेल के मन पर गहरा सदमा उस घटना का पड़ता है।
खाली जमीन पर बाला सिंह अपना फैक्ट्री खोलता है, जिसमें अवैध कारोबार ड्रग्स, वेश्यावृत्ति आदि होता है। और अलग से धार्मिक कल्ट का नया सब्जबाग तैयार होता है। राणा सिंह से मुठभेड़ में नायक घायल हो जाता है। गटर में पड़े उसे हिजड़े अपने रहवास में ले जाते हैं। जहाँ हिजड़ों का सरदार उसे शिव के अर्द्धनारीश्वर के स्वरूप की व्याख्या करता है। आंतरिक शक्ति के उद्घाटन के लिए एक जड़ी हनुमान बूटी उसे पिलाता है, जिससे उसमें अपार शक्ति का अनुभव होता है। इधर बाला अपनी शक्ति के प्रसार के लिए हिन्दू रक्षा दल के नेता अधेश जोशी को चुनाव लड़ाने की योजना बनता है। देव पटेल की इस मूवी की खाशियत यह है कि अस्पष्ट छवि के साथ सांप्रदायिक दंगे, दलित, आदिवासी, स्त्री और मुसलमानों के माब लिचिंग के दृश्यों को दिखा देते हैं। उभरते हुए हिन्दू शक्तियों के राष्ट्रवादी स्वरूप का इस फिल्म में दृश्यांकन बहुत कुछ बयां कर जाता है। यदि देव पटेल हिन्दू पौराणिकता का सहारा इस फिल्म नहीं लेते तो जाहिर है उनका विरोध होता। लेकिन अंग्रेज़ी भाषा में रिलीज इस फिल्म को एजुकेटेड लोग ही समझ सकते हैं। भाजपा और आरएसएस के चरम युग में इस तरह की फिल्म बनाना भारतीय सिनेमा के बस की बात नहीं है।
भारत में लोकतंत्र के आगमन के साथ दलित और आदिवासियों के हक और अधिकार सुनिश्चित हो सके। इसके अलावा उनके मानवीय वजूद को भी स्वीकार किया गया जब उन्हें वोट देने का अधिकार मिला। एक वोट एक व्यक्ति की वैल्यू ने हमें डेमोक्रेसी में समानता की आधारशिला रखी। जिसके सूत्रधार डा. अम्बेडकर थे। अफ्रीकी देशों में अश्वेत विभेद और गुलामी के खिलाफ मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला ने अपने लोगों के हक- अधिकार के लिए लड़ा। भारत के दक्षिण राज्यों में उत्तर की अपेक्षा पाश्चात्य आंदोलन का ज्यादा प्रभाव रहा है। क्योंकि औपनिवेशिक शक्तियों समुद्र मार्ग वहीं से भारत में प्रविष्ट हुईं। इसलिए वहां बहुतायत में अंग्रेजी भाषा भी बोली जाती है। लेकिन आदिवासी और दलित समुदाय का जीवन जातिवादी खाँचे में पिसता रहा है।
इसी को आधार बनाकर मैडोना अश्विन ने 2021 में "मंडेला" नाम से मूवी बनाईं। जिसमें डाईरेक्शन और लेखन वे खुद किये हैं। इस मूवी में लीड रोल में "योगी बाबू" और अपोजिट रोल में "शीला राजकुमार" ने अभिनय किया है। योगी बाबू स्माईल नाई के का किरदार किये हैं। यह कहानी 'तमिलनाडु के सोरंगुडी नामक एक छोटे से गांव में , लगभग 1000 लोगों की आबादी, दो जाति-आधारित गुटों, उत्तरी और दक्षिणी में विभाजित है। जब जातिगत भेदभाव का अनुयायी, लंबे समय से निर्विरोध गांव का अध्यक्ष, चुनाव से महीनों पहले पंगु हो जाता है, तो उसके दो बेटे, रथिनम और माथी, मुखिया पद के लिए लड़ने का फैसला करते हैं। चुनाव जाति के आधार पर विभाजित है, क्योंकि बड़े बेटे की माँ एक उत्तरी और छोटे बेटे की माँ एक दक्षिणी है। पूर्व-मतदान के आधार पर, यह पता चलता है कि वोट विभाजित है। टाईब्रेकर वोट स्माइल, उर्फ नेल्सन मंडेला नामक एक निचली जाति के स्थानीय हेयर स्टाइलिस्ट पर पड़ता है, जो हाल ही में मतदाता सूची में शामिल हुआ है। फिल्म का बाकी हिस्सा इस बारे में है कि मंडेला का वोट किसे मिलता है। फिल्म चुनाव के एक 'आश्चर्यजनक' परिणाम के साथ समाप्त होती है, जिसमें यह खुलासा नहीं किया जाता कि कौन जीता है, लेकिन इस तथ्य की ओर इशारा किया जाता है कि सूरनगुडी के लोगों ने एकजुट होकर चुनाव जीता है।' यह फिल्म तमिल भाषा में, सीधे स्टार विजय के माध्यम से ४ अप्रैल २०२१ को और अगले दिन नेटफ्लिक्स के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रिलीज़ किया गया था।
'फिल्म दो राजनीतिक दलों के बीच एक ग्राम पंचायत चुनाव परिदृश्य की पृष्ठभूमि पर आधारित है। जिसमें ग्रामीण परिवेश के अहम मुद्दों की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है। इसे 2022 के मध्य में होने वाले 94वें अकादमी पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म के लिए नामांकित होने वाली 14 भारतीय फिल्मों में से एक के रूप में चुना गया था। 68वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में , इसने निर्देशक की सर्वश्रेष्ठ पहली फिल्म और सर्वश्रेष्ठ पटकथा (संवाद) के लिए 2 पुरस्कार जीते , दोनों ही मैडोन अश्विन के लिए थे।'
सेम थीम पर 2023 में तेलुगु भाषा इसे "मार्टिन लूथर किंग" के रूप में बनाया गया! जिसका डाइरेक्शन puja kolluru ने किया। लेकिन पटकथा और संवाद लेखन मैडोना अश्विन ने लिखा था। पात्र बदल दिये गये और लीड कैरेक्टर का पेशा भी। जहाँ मंडेला में योगी बाबू नाई का किरदार निभाए थे वहीं मार्टिन लूथर किंग में sampoornesh babu ने स्माइल मोची का किरदार निभाया है। गांव का राजनीति वर्चस्व उत्तर और दक्षिण में विभाजित। पेड्डायन (राघवन) नामक मुखिया ने दो जातियों की औरतों से विवाह इसलिये किया था कि एकता कायम रह सके लेकिन दोनों के बेटों ने गांव को दो हिस्सों में बांट कर बंटाधार कर दिया है। गांधीवादी चरित्र में पेड्डायन को निर्मित किया गया है। गांव में अछूत दलित जातियां निवासित नहीं हैं क्योंकि वहाँ से उन लोगों को मार कर भगा दिया गया है। गांव में आये विकास के पैसों से Jaggu (vk naresh) और Loki (venatesh maha) अपना निजी उद्योग चलाते हैं। आपसी दुश्मनी विकास कार्यों को ध्वस्त कर देती है। जिसमें स्कूल, पेय जल, सड़क, शौचालय और बिजली की समस्या गांव में बनी हुई है। स्माईल जिसमें गांव भर अछूत समझते हैं, प्रायः फ्री में लोग काम लेते हैं। उस का अपना कोई नाम नहीं है, उसे इडियट, पगला, स्माइल आदि नामों से संबोधित किया जाता है। एक पेड़ के नीचे जूते बनाने का काम करता है। बसंता (sharanya pradeep) जो कि डाकघर में काम करती है। उसके पैसे के लिए एकाउंट खुलवाती है। क्योंकि उसके पास घर न होने की वजह, पैसे चोरी हो जाते हैं। वही उसका नामकरण भी करती है।
स्थानीय विधायक गांव की जमीन पर टाइल फैक्ट्री खोलना चाहता है लेकिन बुढ़ा पेड्डायन फैक्ट्री के खिलाफ़ होता है। इसलिए आगामी चुनाव में विधायक 30 करोड़ की लालच देकर किसी एक को मुखिया बनने के लिए उकसाता है। ताकि उसकी मुराद पूरी हो सके। गांव दो भागों में विभाजित होने के कारण मत समान आते हैं लेकिन स्माईल के एक नये वोटर कार्ड चुनाव की गणित को रोमांचित करने वाला मोड़ देता है। वोट की खरीद के प्रलोभन की बेबाक व्यंग्य इस फिल्म के माध्यम से दिया गया। अंत में दोनों पक्ष के उम्मीदवार मार्टिन के जान के दुश्मन बन जाते हैं। लेकिन मार्टिन गांव की दुश्वारियों से वाकिफ होने की वजह से बिजली, सड़क, शौचालय और पानी की सार्वजनिक निकायों को दोनों पक्षों से दबाव डलवाकर पूरा करा लेता है। अंत में गांव के लोग उसकी जान बचाते हैं और गांव में एकता कायम होती है। अमरीका में दिये मार्टिन लूथर किंग आजादी के स्पीच को चंद लाइनों को शामिल किया गया।
Martin Luther king-
'I have a dream that one day...
This nation will rise up and live out the true meaning of its creed.
We hold these truths to be self - evident
That all man are created equal.'
एक बात जो खलती है वो यह कि अश्विन को अश्वेत हिस्टोरिकल नायक के मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला याद हैं लेकिन भारत में दलितों के हक अधिकार के लिए लड़ने वाले डा. अम्बेडकर क्यों नहीं याद हैं? हिन्दी अनुवाद में गलती यह कि गई है कि 'इडियट' की जगह 'मोची' संबोधन है। जूते बनाने का काम भारत में चमार जाति के हिस्से रहा है लेकिन इसके अलावे भी उसने अन्य काम किया है। प्रायः इस काम को भारतीय परिवेश में निम्न कोटि का मान गया है। इसलिए इस काम को करने वाले व्यक्ति के साथ अस्पृश्यता का बर्ताव भी किया गया है। अश्विन गांधीजी की प्रतिमा का चित्रांकन करते हैं। इससे जाहिर होता है कि वे गाधी जी के वैचारिकता के पोशक हैं। क्योंकि गांधीवादियों की नजर में डा. अम्बेडकर दुश्मन हैं। और दलितों के बड़े उद्धारक गांधी जी हैं। यही दृष्टि दलित और गैर-दलित के भेद को स्पष्ट करती है। यदि कोई दलित उक्त मूवी की पटकथा लिख होता तो उसे अपने असली नायक याद होते! उसे गांधी और विदेशी नायकों को आयातित नहीं करना पड़ता। फिर भारतीय सिनेमा में यथार्थवादी फिल्मों का चलन शुरू हो चुका है। इस कड़ी में 'आर्टिकल 17, मसान, काली, जय भीम, भीमा कैरेगांव, फैंड्री, असुरन और कर्णन को देखा जा सकता है।
0 टिप्पणियाँ